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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [प्रकिर्णका:], --------------- ---------- मूलं [१४४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१४४] याओ य भाषविअंति, अणुत्तरोचवाइयदसासु णं तित्थकरसमोसरणाई परमंगल् जगहियाणि जिणातिसेसा य बहुमिसेसा जिणसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्यीणं थिरजसाणं परिसहसेण्णरिउबलपमद्दणाणं तवदित्तचरितणाणसम्मत्तसारविविहप्पगारवित्थरपसत्वगुणसंजुयाणं अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ उत्तमवरतवविसिट्ठणाणजोगजुत्ताणं जह य जगहियं भगवओ जारिसा इडिविसेसा देवासुरमाणुसाणं परिसाणं पाउन्भावा य जिणसमीवं जह य उवासंति जिणवरं जह य परिकहति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणं सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्मविसयविरत्ता नरा जहा अब्भुति धम्ममुरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं जह बहूणि वासाणि अणुचरित्ता आराहियनाणदसणचरित्तजोगा जिणवयणमणुगयमहियं भासित्ता जिणवराण हिययेणमणुण्णेत्ता जे य जहि जत्तियाणि भत्ताणि छेअइत्ता लण य समाहिमुत्तमझामजोगजुत्ता उववना मुणिवरोत्तमा जह अजुत्तरेसु पार्वति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं तओ य चुआ कमेण काहिंति संजया जहा व अंतकिरियं एए अन्ने य एबमाइभत्या वित्थरेण, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता पावणा संखेजा अणुओगदारा संखेजाओ संग्रहणीओ, से पं बंगट्टयाए नक्मे ये एगे सुयक्खंधे दस अजनयणा तिन्नि वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुदसणकाला संखेजाई पयसबसहस्साई पयग्मेणं प०, संखे आणि अक्खराणि जाव एवं चरणकरणपरूवणया अपविजंति, सेतं अणुत्तरोववाइयदसाओ ॥ ९॥ (सूत्रं १४४) 'से किं तमित्यादि, नास्मादुत्तरो विद्यते इत्यनुत्तर उपपतनमुपपातो जन्मेत्यर्थः अनुत्तरः-प्रधानः संसारे अन्वस्थ तथाविधस्याभावादुपपातो येषां ते तथा त एवानुत्तरोपपातिकाः, तद्वक्तव्यताप्रतिबद्धा दशा-दशाध्ययमोपलक्षिता अनुत्तरोपपातिकदशाः, तथा चाह-'अणुत्तरोक्वाइयदसासु म'मित्यादि, तत्रानुत्तरोपपातिकानामिवि-साधूनां | प्रत अनुक्रम [૨૨]. Saintairatun अनुत्तरोपपातिकदशा अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, ~254~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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