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________________ आगम (०४) [भाग-७] “समवाय" - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) समवाय [४२], -------------------------------- मूल [४२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सूत्राक [४२] संखे दयसीमे य, कालोए णं समुद्दे पायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा, बायालीस सूरिया पभासिसु वा ३, समुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं चायालीसं वाससहस्साई ठिई प०, नामकम्मे पायालीसविहे प०, तं०-गइनामे जाइनामे सरीरनामे सरीरंगोवंगनामे सरीरबंधणनामे सरीरसंघायणनामे संघयणनामे संठाणनामे वण्णनामे गंधनामे रसनामे फासनामे अगुरुलहुपनामे उवधायनामे परापायनामे आणुपुचीनामे उस्सासनामे आयवनामे उओयनामे विहगगइनामे तसनामे यावरनामे सुहमनामे पायरनामे पजत्तनामे अपजत्तनामे साहारणसरीरनामे पत्तेयसरीरनामे थिरनामे अथिरनामे सुभनामे असुमनामे सुमयनामे दुन्भगनामे सुसरनामे दुस्सरनामे आएजनामे अणाएजनामे जसोकित्तिनामे अजसोकित्तिनामे निम्माणनामे तित्थकरनामे, लवणे णं समुद्दे चायालीसं नागसाहस्सीओ अम्भितरियं वेलं धारंति, महालियाए णं विमाणपविभत्तीए बितिए वग्गे चायालीस उद्देसणकाला प०, एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचमछट्ठीओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं प०, एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढमबीयाओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं प० ॥ सूत्र ४२॥ द्विचत्वारिंशत्स्थानकं व्यक्तमेव, नवरं 'बायालीसं'ति छद्मस्थपर्याय द्वादश वर्षाणि षण्मासा अर्द्धमासथेति केवलिपर्यायस्तु देशोनानि त्रिंशद्वर्षाणीति पर्युषणाकल्पे द्विचत्वारिंशदेव वर्षाणि महावीरपर्यायोऽभिहितः, इह तु साधिक उक्तः, तत्र पर्युषणाकल्पे यदल्पमधिकं तन्न विवक्षितमिति सम्भाव्यत इति, 'जाय'त्ति करणात् 'बुद्धे मुत्ते अन्तगडे परिनिव्वुडे सबदुक्खप्पहीणे'त्ति रश्य। 'जम्बूद्वीपस्थे'त्यादि 'पुरच्छिमिलाओ चरिमंताओंति जगतीनाबपरि प्रत अनुक्रम [१९८] १२ सम. REscadrina A ncierary.orm ~144~
SR No.035007
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages338
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_samvayang
File Size72 MB
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