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________________ आगम (०३) [भाग-6] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [९], उद्देशक [-], मूलं [६९३] + गाथा: प्रत सूत्रांक [६९३] 84545453 से जहानामते अजो! अहं तीसं वासाई अगारवासमो वसित्ता मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिते दुवालस संपराई तेरस पक्खा छउमस्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहि पक्सहिं ऊणगाई तीसं बासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता बायालीस वासाई सामण्णपरियाग पाउणित्ता बावत्तरि वासाई सब्बाउयं पालइत्ता सिव्हिास्सं जाव सम्वदुक्खाणमंतं करेस्स एवामेव महापठमेवि अरहा तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता जाव पविहिती दुवालस संवच्छाराई जाव बावत्तरिवासाई सब्याउयं पालइत्ता सिक्झिहिती जाय सम्बदुक्खाणमंतं काहिती-"जैसीलसमायारो अरहा तिथंकरो महावीरी । तस्सीलसमायारो होति उ अरहा महापउमे ॥ १॥ (सू०६९३) (इति श्री महापाचारित्रं संपूर्णमिति) सुगम चैतत्, नवरं एषः-अनन्तरोक्त आर्या इति श्रमणामन्त्रणं 'भिभित्ति ढका सा सारो यस्य स तथा, किल तेन कुमारत्वे प्रदीपनके जयढका गेहान्निष्काशिता ततः पित्रा भिंभिसार उक्त इति, सीमंतके नरकेन्द्र के प्रथमप्रस्तटवर्तिनि चतुरशीतिवर्षसहस्रस्थितिषु नरकेषु मध्ये नारकत्वेनोत्पत्स्यते, कालः स्वरूपेण कालावभास:-काल एवावभासते पश्यतां यावत्करणात् 'गंभीरलोमहरिसे' गम्भीरो महान् लोमहषों-भयविकारो यस्य स तथा, 'भीमो' विकराल: 'उत्तासणओं उद्वेगजनकः, 'परमकिण्हे बन्नेण'ति प्रतीतं, स च तत्र नरके वेदनां वेदयिष्यति, उज्वलां-विपक्षस्य लेशेनाप्यकलङ्कितां यावत्करणात् त्रीणि मनोवाकायबलानि उपरिमध्यमाधस्तनकायविभागान् वा तुलयति-जयतीति ४वितुला तां, कचिद्विपुलामिति पाठः, तत्र विपुला-दारीरव्यापिनी तां, तथा प्रगाढां-प्रकर्षवती कटुका-कटुकरसोत्पा|दितां कर्कशा-कर्कशस्पर्शसम्पादितां अथवा कटुकद्रव्यमिव कटुकामनिष्टा, एवं कर्कशामपि, चण्डो-वेगवी झटि दीप अनुक्रम [८७२-८७६] SamEaucatunimimation पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ~354~
SR No.035006
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 06 Sthan Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages494
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size106 MB
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