SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०३) [भाग-6] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [९], उद्देशक [-], मूलं [६९३] प्रत सूत्रांक [६९३] रस्स लोगस्स परियागं जाणइ पासइ सव्वलोए - सव्वजीवाणं आगई गति ठिय चयर्ण उववायं तक मणोमाणसियं मुत्तं कई परिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्मं अरहा अरहस्स भागी तं तं कालं मणसवयसकाइए जोगे वट्टमाणाणं सब्बलोए सबजीवाण सम्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरद, तए णं से भगवं तेणं अणुत्तरेणं केवलवरनाणदसणेणं सदेवमणुभासुरलोग अभिसमिया समणाणं निर्गवाणं [जे केइ उवसम्गा उप्पजति, 40-दिब्बा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उत्पने सम्मं सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहियासिस्सइ, तते णं से भगवं अणगारे भविस्सति ईरियास मिते भास० एवं जहा बद्धमाणसामी त चेव निरवसेसं जाव अव्वाचारविउसजोगजुत्ते, तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहि संवच्छरेहिं वीतिकंतेहिं तेरसहि य पक्वहिं तेरसमस्त थे संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अणुत्तरेणं णाणेणं जहा भावणाते केवलबरनाणदसणे समुप्पजिहिन्ति जिणे भविस्सति केवली सम्वन्नू सन्यदरिसी सणेरईए जाव] पंच महब्बयाई सभाषणाई छच्च जीवनिकायधम्म देसेमाणे विहरिस्सति से जहाणामते मनो! मते समणार्ण निग्गंथाणं एगे आरंभठाणे पण्णत्ते, एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं एग आरंभट्ठाणं पण्णवेहिति से जहाणामते अज्जो मते समणाणं निगंथाणं दुविद्दे बंधणे पं० ०-पेजवंधणे दोसबंधणे, एवामेव महापउमेवि अरहा समगाणं णिग्गंधाणं दुविहं बंधणं पनवेहिती, तं०-पेजबंधगं च दोसबंधणं च, से जहानामते अजो मते समणा० निर्गयाणं सओ दंडा पं००-मणदंडे ३ एवामेव महापउमेवि समणाणं निग्गंथाणं ततो दंडे पण्णवेदिति, सं०-मणोदंडं ३, से जहा नामए एएणं अभिलावणं चत्तारि कसाया पं० २०-कोहकसाए ४ पंच कामगुणे पं० २०-सहे ५ छज्जीवनि दीप अनुक्रम [८७२-८७६] ॐॐॐॐ ER पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ~352~
SR No.035006
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 06 Sthan Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages494
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size106 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy