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________________ आगम (०३) [भाग-6] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [९], उद्देशक [-], मूलं [६६६] प्रत सूत्रांक [६६६] CARE* KAROLkrit संसारसमावनगा जीवा पं० सं०-पुढविकाइया जाव वणस्पइकाइया वेइंदिया जाव पंचिदितत्ति १ पुढधिकाइया नवगइया नवआगतिता पं० त०-पुढवीकाइए पुढविकाइएमु उपवञ्जमाणे पुढ विकाइएहितो वा जाप पंचिदियेहितो वा उववजेजा, से चेवण से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विपजहमाणे पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिंदियत्ताते वा गच्छेज्जा २ एवमाउकाइयावि ३ जाव पंचिंदियत्ति १० णवविधा सबजीवा पं० तं०-एगिदिया वेइंदिया तेइंदिया चउरिविया नेरतिता पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा सिद्धा ११ अथवा गवविहा सधजीवा पं० त०-पढमसमयनेरतिता अपढमसमयनेरतिता जाब अपढमसमयदेवा सिद्धा १२ । नवविहा सव्वजीवोगाहणा पं० २०-पुड विकाइओगाहणा आउकाइओगाणा जाव पणस्सइकायउगाहणा येईदियोगाहणा तेइंदियओगाहणा चउरिदियओगाहणा पंचिंदियओगाहणा १३ जीवाणं नवहिं ठाणेहिं संसार वत्तिमुवा पत्तंति वा बत्तिस्संति वा, तं०-गुढविकाइयत्ताए जाव पंथिदियत्ताए १४ (सू०६६६) णवहिं ठाणेहिं रोगुत्पत्ती सिया तं०-अनासणाते अहितासणाते अतिणिहाए अतिजागरितेण उच्चार निरोहेणं पासवणनिरोहेणं अद्भाणगमणेणं भोवणपतिकूलताते इंदियस्थविकोवणवाते १५ (सू० ६६७) 'अभिणदणे'त्यादि कण्ठ्यं । अभिनन्दनसुमतिजिनाभ्यां च सद्भूताः पदार्थाः प्ररूपितास्ते च नवेति तान् दर्शयनाह-नव सम्भात्यादि, सद्भावेन-परमार्थेनानुपचारणेत्यर्थः पदार्था-वस्तूनि सद्भावपदार्थाः, तद्यथा-जीवाः सुखदुःखज्ञानोपयोगलक्षणा, अजीवास्तद्विपरीता, पुण्य-शुभप्रकृतिरूपं कर्म पापं-तद्विपरीतं कमैंव आश्रूयते-गृह्यते |कर्मानेनेत्याश्रयः शुभाशुभकर्मादानहेतुरिति भावः, संवरः-आश्रवनिरोधो गुस्यादिभिः, निर्जरा विपाकात् तपसा वा SAK ASKCAMER-4 दीप अनुक्रम [८०५] स्था०७५] Et पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [३], अंग सूत्र - [०३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: ~324~
SR No.035006
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 06 Sthan Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages494
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size106 MB
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