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________________ आगम (०३) [भाग-6] "स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:) स्थान [८], उद्देशक [-], मूलं [५९४] अथाष्टमस्थानकाख्यमष्टमाध्ययनं। प्रत सूत्रांक [५९४] व्याख्यातं सप्तममध्ययनमधुना सङ्ख्याक्रमसम्बद्धमेवाष्टस्थानकाख्यमष्टममध्ययनमारभ्यते, तस्य चेदमादिसूत्रम् अहि ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिहति एगलविहारपडिमं उवसंपजित्ताणं विहरित्तते, तं-सड़ी पुरिसाते सो पुरिसजाए मेहावी पुरिसजाते बहुस्सुते पुरिसजाते सत्तिर्म अपाहिकरणे घितिम वीरितसंपन्ने (सू०५९४) अट्ठविधे जोणिसंगहे पं० त०-अंडगा पोतगा जाव उम्भिगा उववातिता, अंडगा अट्ठगतिचा अट्ठागा पं०, ०-अंडए अंडएम स्ववजमाणे अंडरहितो वा पोततेहिंतो वा जाव उववातितेहिंतो वा उववजेज्वा, से चेव णं से अंडते अंडगत्तं विष्पजहमाणे अंडगताते वा पोतगत्ताते वा जाव उवयातितत्ताते वा गच्छेजा, एवं पोतगावि, जराउजावि, सेसाणे गतीरागती णस्थि (सू० ५९५) जीवा णमह कम्मपगडीतो चिर्णिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, सं०-णाणावरणिजं दरिसणावरणिजं वेयणिज मोहणिज आउयं नाम गोत्तं अंतरातितं, नेरइया णं अङ्क कम्मपगडीओ चिणिंसु वा ३, एवं चेव, एवं निरंतर जाव वेमाणियाणं २४, जीवा णमह कम्मपगडीओ उवचिणिंसु वा ३ एवं चेन, एवं चिण १ उवचिण २ बंध ३ उदीर ४ वेय ५ तह णिजरा ६ चेव । एते छ चउवीसा २४ दंडगा भाणियन्वा (सू० ५९६) ACCCCCCCESS दीप अनुक्रम [६९९] स्था०७० Ech पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित....आगमसूत्र - [०३], अंग सूत्र - [३] "स्थान" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: अथ अष्टमं स्थानं आरभ्यते ~264~
SR No.035006
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 06 Sthan Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages494
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size106 MB
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