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तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास
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उसे एक किशोर के रूप में हो ही गया । वह भावावेश में आने लगा । अल्लाह ने जिबरील के द्वारा उसके पास, व्यक्त और अव्यक्त, प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में बनी इसमाईल के लिये एक ग्रंथ भेजना प्रारंभ कर दिया । वह पढ़ न सका । कहा – 'पढ़' । बस, कुरान की रचना आरंभ हो गई ।
जिबरील ने
मुहम्मद साहब ( मृ० ६८६ प ० ) कर्मशील नबी बन गए थे । उन्हें विश्वास हो गया था कि यहूदियों और मसीहियों की आसमानी किताबें अपने वास्तविक रूप में नहीं हैं । अतः उन्होंने घोषणा कर दी कि यहूदी और मसीही 'ग्रह' किताब' होते हुए भी सच्चे मत से भ्रष्ट हो गए हैं और इब्राहीम के असली मत की अवहेलना कर अन्य मतों का प्रचार कर रहे हैं । उनका यह भी दावा था कि अल्लाह प्रत्येक जाति को, उसी की भाषा में, एक आसमानी किताब भेजता है । अरबों के लिये उसकी आसमानी किताब कुरान है जो उसके आखिरी रसूल पर नाजिल हो रही है । मुद्दम्मद साहब ने कुरान के प्रमाण पर अपने को रसूल सिद्ध किया और नाना देवी-देवताओं का खंडन कर अल्लाह का एकाकी शासन प्रतिष्ठित किया । अरबों को सहसा उन पर विश्वास न हुआ । उनका विरोध प्रारंभ हुआ । उनकी ओर से कहा गया कि मुहम्मद साहब उम्मी है, पढ़ना-लिखना जानते ही नहीं, फिर भला कुरान उनकी रचना किस प्रकार हो सकती है ? जब लोगों ने विश्वास न किया तब उनको चुनौती दी गई कि वे एक दूसरी किताब कुरान के टक्कर की बना दें I फिर भी लोगों को संतोष न हुआ । बे मुहम्मद साहब को शायर काहिन, मजनून, ग्रहलाम, नकूल, अजगास आदि न जाने क्या क्या कहते रहे ।
(1) Studies in Islamic Mysticism p. 83 (२) Mystical Elements in Mohammad p. 79
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