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नागरीप्रचारिणी पत्रिका हिन का सौभाग्य मिला था। व्यक्ति-विशेष तो लुक छिपकर हो मसीह के विरह का अनुभव कर सकता था। यहूदियों की भी यही प्रवृत्ति थी। उनकी दृष्टि में बनी-इसराईल के अतिरिक्त किसी अन्य जाति पर ईश्वर की अनुकंपा न थी। सच पूछिए तो शामी जाति सिकुड़कर 'बनी-इसराईल' की कृपा-कोर जोह रही थी। उसी का बोलबाला था।
संयोगवश अरब के कुरेश वंश के काहिन-कुल का एक दीन बालक समय के प्रभाव से एक संपन्न रमणी की चाकरी करता था। वह अपनी कुशलता एवं शील-स्वभाव के कारण उसका स्वामी बन गया। व्यापार में जो विचार हाथ आए, मका के मंदिर में जो दृश्य उपस्थित हुए, सत्संग में जिन मतों का परिचय मिला, उनसे उसका चित्त व्याकुल तथा विह्वल हो गया। वह सोचने लगा कि अल्लाह की सारी कृपा इब्राहीम के एक ही पुत्र की संतानों पर क्यों हुई? इसमाईल की संतानों ने उसका क्या बिगाड़ा है। धीरे धीरे उसमें जाति तथा अल्लाह की चिंता बढ़ी। अरब स्वभावत: स्वतंत्र होते हैं। मत की पराधीनता उसे खलने लगी व्यग्र हो वह अल्लाह की आराधना में तन्मय हो गया। वह नगर के बाहर चला जाता और हीरा की एकांत गुफा में अल्लाह की आराधना में घंटों पड़ा रहता। अंत में अल्लाह का साक्षात्कार
प्रणय किसी न किसी रूप में बना रहा। पाल प्रभूति मसीही प्रचारकों ने केवल संस्था या मसीही संघ पर ध्यान दिया। सूफियों के प्रभाव से जब यूरोप में प्रेम का प्रवाह उमड़ा और क्रूसेड तथा शिवालरी के कारण पुरुषों का अभाव हो गया तब यह आवश्यक हो गया कि मसीही संब रमणियों के प्रति उदार हो। सूफियों के अलौकिक प्रेम से प्रोत्साहित हो मसीहियों ने भी मसीह और मरियम को रति का अलौकिक प्रालंबन चुना। धर्म का सहारा मिल जाने के कारण इन प्रेमियों की प्रतिष्ठा बढ़ी और मसीह की दुलहिनों का सम्मान हुश्रा।
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