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नागरीप्रचारिणी पत्रिका मुहम्मद साहब को जान बचाकर मका से मदीना प्रस्थान करना पड़ा। विद्र के संग्राम में मुहम्मद साहब अजीब ढंग से विजयी हुए। लोगों को विश्वास हो गया कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, और कुरान एक आसमानी किताब है। मुहम्मद साहब का पक्ष पुष्ट हो चला। अनेक वीर-धुरीण अरब उनके दल में आ गए। बहुतों से संबंध भी स्थापित कर लिया। अनेक पारिवारिक और राजनीतिक प्रश्न उठे। सबका समाधान कुरान से कर दिया गया । मुहम्मद साहब का महत्त्व बढ़ा। अल्लाह के साथ उनका भी नाम जोड़ दिया गया। उनके उठने-बैठने, चलने-फिरने, पाने-जाने, खाने-पीने, कहने-सुनने आदि सभी व्यापारों पर पूरा ध्यान दिया गया। संक्षेप में, उनके मत-इसलाम का प्रचार होने लगा।
मुहम्मद साहब की मनोवृत्तियों के विषय में अथवा उनके सूफीत्व के संबंध में विद्वानों में गहरा मतभेद है। विज्ञान के कट्टर भक्त तो उनको अपस्मार से ग्रस्त ही समझते हैं। ऐसे महानुभावों का भी प्रभाव नहीं जो उनको प्रच्छन्न रसूल एवं चतुर नीतिज्ञ मानते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मुहम्मद ईश्वर के मद में मस्त रहनेवालारे कवि था। वह अपनी तरल भावनाओं की परीक्षा नहीं कर पाता था और सदा भाव-भक्ति में मग्न रहता था। उसका अंतिम जीवन प्रौढ़ावस्था से कम सूफियाना था। यथार्थतः वह धार्मिक अथवा भक्त नीतिज्ञ था। आर्चर३ महोदय के मत में मुहम्मद साहब मन एवं क्रिया से वास्तव में भक्त थे। अरब के निकटवर्ती प्रांतों में उस समय किसी प्रकार की योग-प्रक्रिया प्रचलित थी। कतिपय अरब उससे परिचित थे। मुहम्मद साहब
(1) The Idea of Personality in Sufism p. 4 (२) Aspects of Islam p. 187, 259.76 (a) Mystical Elements in Mohammad p. 87-26
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