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________________ ४७६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका ने जिस प्रेम का निरूपण किया वह विषय-जन्य होने पर भी अलौकिक हो गया । प्रज्ञा और प्रेम के प्राय से प्लेटो ने जिस समाज का सृजन किया उसका प्रत्यक्ष दर्शन भले ही किसी को न मिला हो; किंतु उसके प्रभाव से सारा देश लहलहा उठा । ग्रीस में उसके उपरांत जो ज्ञान-धारा उमड़ी उसमें शामी मत प्रायः डूब से गए । फोलो के समान यहूदी पंडित ने मूसा और प्लेटो का समन्वय इष्ट समझा और मादन-भाव का पक्ष लिया । पाल और जान के संबंध में यह स्मरण रखना चाहिए कि उन पर प्रार्य जाति का प्रभाव निर्विवाद है । पाल' ने मरण में जीवन एवं आदर्श में जो परम प्रकाश का प्रतिपादन किया, जान ने मसीह को जो 'प्रेम', 'प्रकाश' और 'प्रगति' कह उनको 'शब्द' सिद्ध किया, इन सब बातों का सारा श्रेय श्रार्य जाति को ही है । फीलो की भाँति ही क्लेमेंट (मृ० २७७ प०) ने भी मसीह और प्लेटो के मतों को एक में जोड़ दिया । ग्रीस के दार्शनिक विचारों में भारत का कितना योग था, इसका निश्चय अभी तक न हो सका । पर इतना वा निर्विवाद है कि प्लोटिनस (मृ० ३१७ १०) ने भारतीय दर्शन के आधार पर प्लेटो के प्रेम और पंथ को पुष्ट किया । भारत के संसर्ग से यूनान में जो दार्शनिक लहर उठी, सिकंदरिया में जो जिज्ञासा जगी, उनके प्रवाह से शामी मतों में चिंतन का प्रचार हो गया। फीलो, पाल, जान, क्लेमेंट तक ही उसका प्रभाव सीमित न रहा, ओरिगन ( मृ० ३१० प० ), टट्टुल्लियन, आगस्टीन (मृ० ४८७ १०) और डायोनीसियस ( · ) Christian Mysticism p. 20, 67 ( २ ) रम्जे महोदय का कथन है "Every attempt to create a European Greek domination on the Asianic coasts has resulted in disaster and ruin" (A.E. in G. Civilization p. 301) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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