________________
तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४७७ (मृ० ४८२ प० ) प्रभृति संत भी इसके प्रवाह में अभिषिक हुए।
ओरिगन ने सुलेमान के गीत की टोका की, शिक्षितों तथा अशिक्षितों के धर्म में विभेद स्थापित किया। स्टुलियन ने स्पष्ट कहा कि यदि जीवात्मा दुलहिन है तो शरीर दहेज है। मागस्टीन अपने को ब्रह्म कहना ही चाहता था कि शामी-संकीर्णता के कारण रुक गया। डायोनीसियस मसीही संतो में एक पहेली सा हो गया। नव-जेटो-मन के सेक के प्रभाव से उसने मसीही मत में भक्ति-भाव को जो रूप दिया वह सर्वथा सूफियों के अनुकूल था। बहुत से लोग तो डायोनीसियस को सूफी मत का सारा श्रेय दे देने में भी नहीं हिचकते। सारांश यह कि पार्य जाति की कृपा से मादन-भाव की. धारा स्वच्छ, संयत एवं सबल हो शामीसंघ को प्राप्लावित करती रही और अपनी रक्षा के लिये कुछ तर्क-वितर्क भी करने लगी।
प्लोटिनस संसार के उन इने-गिने व्यक्तियों में है जो किसी ईश्वर का संदेश लेकर नहीं माने, प्रत्युत अपनी अनुभूति से उसे कण कण में देखते ही नहीं बल्कि औरों को उस दिव्य चक्षु का पता भी बता देते हैं जो मनुष्यमात्र की थाती है और जिसे विभु ने प्रादर्श-रूप से सबके हृदय में रख दिया है। प्रसिद्ध ही है कि तृष्णा के शमन के लिये वह पारस तक माया था। उस पर वेदांत का इतना ब्यापक एवं गहन प्रभाव है कि वह सहज ही भारत का ऋणी सिद्ध हो जाता है। पृथिवी से लेकर नक्षत्र-मंडल तक उसे जिस एकाकी सत्ता का पालोक मिला उसका निदर्शन उसने
(1) Christian Mysticism p. 101
„ Appendix D. (1) The Mystics of Islam p. 118 (.) A Literary History of Persia p. 420 (५) The Philosophy of Plotinus p. 12, 14, 23
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com