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________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४७५ दीक्षित होते थे। मनी-मत भी व्यापक, शांत, तपी और प्रसंसारी था। बुद्धि, विवेक, विचार, भावना प्रौर कल्पना उसके मत के प्रधान अंग या पंचगुण थे। उसने ईश्वर को केवल प्रकाश प्रति. पादित किया। उसके मत में ईश्वर की कृपा का विशेष महत्त्व था। संक्षेप में, गुरु-शिष्य-परंपरा का विधान कर, मूर्तियों का खंडन तथा जन्मांतर का निरूपण कर मनी ने जिस समन्वयवादी मत का प्रचार किया उसका दर्शन सूफी मत के रूप में प्राय: मिला करता है। सूफियों का स्वतंत्र दल, जो जिंदीक के नाम से प्रसिद्ध है, वस्तुत: मनी-मत का अवशिष्ट है। स्वयं मनी को प्राप-दंड मिला और उसके मत की प्राण-प्रतिष्ठा तसव्वुफ में हो गई। एक विद्वान् ने ठीक ही कहा है कि मनी-मत के प्रवशिष्ट' पदों में माधुर्यमाव का अर्चन करना चाहिए। अन्य महाशय का उपालंभर है कि केवल रति के प्राधार पर परमेश्वर की माराधना करना मनी-मत का अपराध है। इन जिंदीकों को काम-वासना में ईश्वर की भक्ति सूझती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि सूफीमत का सामान्य रूप मनी-मत में खिल उठा था। शामी शांति के भूखे थे। पर शांति की प्रोट में मसीहियों ने जिस प्रशांति का पीज-वपन किया उससे हमें कुछ मतलब नहीं । हमको तो केवल इतना देख लेना है कि रोम तथा प्रीस में पहुँचकर मसीही मत किस रूप में ढल गया। रोमक शक्ति के उपासक थे। उनका अधिकतर संबंध शासन से रहा है। उनमें भी गुह्य टोलियां बों, किंतु उनसे प्रकृत विषय में कुछ विशेष सहायता नहीं मिलती। ग्रीक सौदर्य के भक थे। उनकी जिज्ञासा ने काम-वासना को जो परम रूप दिया वह सदा पञ्चवित होता रहा। प्लेटो की प्रतिमा (1) Origin of Manicheism p. 30 ia) Studies in the psychology of the mystics p. 161-2 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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