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________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४७१ अन्य संदेशों से पता चलता है कि उस समय नबियों की प्राचीन परंपरा कायम थी। पाल के उपरांत जान ने मसीह को जो रूप दिया वह दार्शनिक तथा बहुत कुछ अ-शामी है। उसका प्रभाव शामी मतों पर इतना गहन पड़ा कि उसकी मीमांसा यहाँ नहीं हो सकती। उसके प्रजात्मक विवेचन पर विवाद न कर हमें स्पष्ट कह देना है कि उसमें भी मादन-भाव की झलक मिलती है। उसने परमेश्वर को प्रेमरूप तो सिद्ध ही किया; एकर स्थल पर मसीह को दुलहा तथा उनके गुरु जान को उनका मित्र कहलाकर मसीह के भक्तों को दुलहिन बनने का संकेत भी कर दिया। हो सकता है कि पाल तथा जान पर रोम तथा प्रोस की गुह्य टोलियों का प्रभाव भी पड़ा हो और प्लेटो के प्रेम ने भी कुछ अपना असर दिखाया हो। जान और गीता का साम्य भी विचारणीय है। प्लेटो ने३ जिस प्रेम का निरूपण किया था वह उसकी वासना और चिंतन का परिणाम था। यूनानियों अथवा आर्य जातियों में बुद्धि की उपासना थी। शामियों की तरह प्रार्य बुद्धि को पाप की जननी नहीं समझते थे। फलत: प्लेटो ने जिस प्रेम का प्रवचन किया उसका प्रसार शीघ्र ही शामी संघ में हो गया। जिस माव की प्राराधना में लोग उन्मत्त थे उसी का एक प्रकार पोषक मिल गया। फिर भी प्लेटो के माघार पर यह नहीं कहा जा (D)I Corinthians XIV. 37, XI, 3; Ephesians v 22-23, 25, Christian Mysticism p. 172 (२) Johu III 29 (१)ोटो पर विचार करते समय रम्जे महोदय के इन गन्दों पर ध्यान रखना चाहिए Plato was guided by ancient ideas, and was not inventing novelties: his model is often to be sought in Autolia or farther eas t.” Asiatic elements in Greek civilization p. 254 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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