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________________ ४७० नागरीप्रचारिणी पत्रिका की आज्ञा का पालन मार्तड तक करता था। तात्पर्य यह कि मादन-भाव के अन्य अवयवों का भी आभास प्राचीन बायबिल में बराबर मिलता है। यह्वा के उपासकों में भी मादन-भाव का कुछ न कुछ प्रसार अवश्य था, जो अवसर पाकर अपना पूरा रंग दिखा जाता था। मसीह के आविर्भाव से शामी जातियों में निवृत्ति-मार्ग की प्रतिष्ठा हुई। मसीह के गुरु जान ( योहन्ना ) एक एसीन थे। एसीन संप्रदाय के विषय में एक समीक्षक का निष्कर्ण है कि एसीनों का यदि एक अंश शामी है तो तीन अंश बौद्ध । निवृत्तिप्रधान एसीनों से मसीह को संसार से अलग रहने की शिक्षा मिली। वे आजीवन ब्रह्मचारी रहे और विरति पक्ष को दृढ़ करते रहे। उनका हृदय मूसा से कहीं अधिक उदार और कोमल था । अतएव उनकी भक्ति-भावना में परमपिता की प्रतिष्ठा हुई, सेनानी यह्वा की नहीं। जिस करुणा और जिस मैत्री को लेकर मसीह आगे बढ़े उनमें हृदय की उदात्त वृत्तियों का पूरा प्रबंध था। पर उनके उपरांत ही उनके उपासकों की दृष्टि संकीर्ण हो गई, और मसीही संघ में पाल और जान के मत चल पड़े। पाल का दावा था कि स्वयं अलौकिक अथवा दिव्य मसीह ने उसे दीक्षा दी थी। फिर क्या था, उसके संदेश चारों तरफ जाने लगे। वह मसीह का कट्टर खलीफा बन गया । यद्यपि वह मसीही संघ का उद्भट पंडित और प्रचारक था, स्वयं ब्रह्मचारी और प्रणय का विरोधी था तथापि उसने विवाह का रूपक लिया। उसका संदेश है "तुम (रोमक) भी अन्य से विवाहित हो सको, जो मृतक से जी उठा है।" स्पष्टत: पाल के इस कथन में उपासक और उपासक के संबंध में पति-पत्रीभाव निहित है। पाल के ( : ) Was Jesus influenced by Buddhism p. 114 (२) Romans VII. 4 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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