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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका यह्वा इसराईल की संतानों का नायक था, नेता था, स्वामी था, शासक था, अधिपति था, संक्षेप में प्रियतम के अतिरिक्त सभी कुछ था। उसकी दृष्टि में उसके सामने किसी अन्य देवता की उपासना अक्षम्य व्यभिचार ही नहीं, घोर पातक एवं भीषण पाप की जननी भी थी। उनके विचार में यहा रति-क्रिया से सर्वथा मुक्त था, अतः उसके मंदिर अथवा भाव-भजन में किसी प्रकार उल्लास को प्राश्रय नहीं मिल सकता था। फिर भी हम स्पष्ट देखते हैं कि यहा के मंदिरों में देवदासो तथा देवदासियों की चहलकदमी तो थी ही; उसके भावुक भक्तों ने उसके लिये पत्नी का विधान भी कर दिया था। यद्यपि यहा के साहसी सेवकों ने धीरे धीरे उसके भवन से पवित्र व्यभिचार को खदेड़ दिया तथापि उसका सूक्ष्म रूप यहा के उपासकों में बना रहा । यह्वा व्यक्ति-विशेष का पति भले ही न बना हो, पर बनी-इसराईल का भर्ता तो अवश्य था । होसियारे ने यह्वा के इस रूप पर ध्यान दिया। उसको अपनी पत्नी के प्रेम-प्रसार में यह्वा का प्रमाण मिला। उसने उसी प्रकार गोमर को, जो संभवतः देवदासी थी, प्यार किया, उससे विवाह किया, उसके व्यभिचार को क्षमा किया, जिस प्रकार यहा ने इसराईल की संतानों से प्रेम किया, उनका पाणि-ग्रहण किया, उनके व्यभिचारों को क्षमा कर सदैव उनका पालन-पोषण किया। यह्वा और होसिया के प्रेम-प्रसार में वास्तव में केवल प्रालंबन का विभेद है, रति-प्रक्रिया का कदापि नहीं। जाति और व्यक्ति, समष्टि एवं व्यष्टि की यह भावना मसीही मत में भी फूलती-फलती रही और आगे चलकर उसमें माधुर्य या मादन-भाव का पूरा प्रचार हो गया। (१) Israel p. 124. (2) Social Teachings of the Prophets & Jesus p.54 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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