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________________ वसन्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४६७ मादन-माव अथवा देवात्मक रवि-विधान में पावन की विशेपता हो मुख्य होती है। यह प्रालंबन जितना हो मोहक होता है उतना ही अलभ्य भी। सच बात तो यह है कि इस अलभ्यता के कारण ही रति को परम प्रेम की पदवी मिलती है। यदि प्रालंबन सहज में उपलब्ध हो जाय तो शायद प्रेम को अलौकिक सिद्ध करने का साहस किसी भी विचारशील व्यक्ति को न हो। सूफियों ने इश्क मजाजी को इश्क हकीकी का जीना मानकर यह स्पष्ट कर दिया कि इश्क मजाजी भी कोई चीज है। बिना उसकी सहायता लिये इश्क हकीकी का गीत गाना पाषंड है। सूफियों ने इश्क हकीकी को इश्क मजाजी के परदे में इस तरह दिखाया है कि उसको देखकर सहसा यह नहीं कहा जा सकता कि उनका वास्तविक प्रालंबन अमरद है या अल्लाह है। 'गीतों के गोत' अथवा 'सुलेमान के गीत' में भी प्रेम की ठीक यही दशा है। अधिकांश अर्वाचीन विद्वानों का, जो मादन-भाव के विरोधी तथा विज्ञान के कट्टर मक्त हैं, मत है कि प्रकृत गीतों में ईश्वर के प्रेम का वर्णन नहीं है। उनका कहना है कि प्राचीन काल में विवाह के अवसर पर जो गीत गाए जाते थे उन्हीं के (.) अमरद फारसी का प्रचलित माशूक है। इसके संबंध में श्री हरिऔषजी का कथन है "इक भाषामों ( अरबी, फारसी और दू) में माशूक माम तौर से अमरद होता है" (रसकलस, भूमिका, पृ. १२१)। भाप अन्यत्र बिखते हैं-"तब भला मरदानगी कैसे रहे, मूक बनवा जप मरद अमरद बने ।" स्पष्ट भइसका यह है कि मंद बनवाकर मरद अमरद अर्थात् मसक या हिजड़ा वा जनाना बन जावे। परंतु श्लेष से व्यंजना यह है कि बिना मूक का लौडा बन जावे, क्योंकि फारसी में विना मंच-पाढ़ी के चौरे को अमरद करते है" (बोबचान, भूमिका, पृ. ६.)। अमरद वास्तव में भरबी शम्म, फारसी के प्रचलित शम मद से उसका कुष भी संबंध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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