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तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास
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प्रतीक के रूप में रहता और सेना का संचालन करता था । जिस संपुट में उसका प्रतीक रखा रहता था उसको किसी अन्य भूमि पर रख देना उचित नहीं समझा जाता था । एलिश ( मृ० ७८१ प० ) को उसके संपुट की संस्थापना के लिये मिट्टी लादकर रणक्षेत्र में ले जानी पड़ी थी । कहने की आवश्यकता नहीं कि यहा के उपासकों की इस संकीर्यता और कठोरता में मादन-भाव का निर्वाह न था । परंतु भावों एवं मतों के इतिहास से स्पष्ट अवगत होता है कि किसी भी भाव अथवा मत का विनाश नहीं होता; अधिक से अधिक उनका तिरोभाव हो जाता है । अवसर पाने पर उनमें फिर बहार आती है और उनकी सुरभि से मस्त हो संसार फिर उन्हों का गीत गाता है । मादन-भाव के विकास में भी यही बात है । यहा के कट्टर कर्मकांडी मादन-भाव के विरोध में जीजान से मर मिटे, पर यह्ना में 'बाल' प्रादि देवी-देवताओं के गुणों का? आरोप हो हो गया । जो स्त्रियाँ अन्य जातियों से बनीइसराईल के घरे में प्राती थीं उनकं देवता भी उनके साथ लगे प्राते थे । घोर विरोध करने से किसी प्रकार अन्य देवों का बहिष्कार तो हो गया, पर साथ ही साथ यहा में उनके गुथों का प्रारोप भी हो गया । परिणाम यह निकला कि यहा की धाराधना में मादन-भाव की झलक बराबर बनी रही और समय पाकर 'काला' के रूप में उसकी कला फूट निकली । यहाँ यहूदियों के 'कुबाला'३ एवं 'तालमंद' के विषय में अधिक न कह केवल इतना कह देना पर्याप्त है कि उनमें गुझ-विद्या का बहुत कुछ सन्निवेश है और वे हैं भी एक प्राचीन परंपरा के उज्ज्वल रत्न । उनके अवलोकन से मादन-भाव के इतिहास पर पूरा प्रकाश पड़ता है ।
(, ) II Kings V. 1
( २ ) Israel p. 405, 407.
( ३ ) Hebrew Literature, Introduction.
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