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________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४६१ वह उसी कब्र में पड़ा पड़ा दुःख-सुख भोगता और अपने उपासकों की देख-रेख करता है। स्वयं मुहम्मद साहब कत्र के इस जीवन के कायल थे। शामियों की तो यहाँ तक धारणा थी कि शव। अपने वाहकों को मार्ग बताता है। बात यह है कि मानव-हृदय जिसकी आराधना करता है उससे सहसा अलग नहीं हो पाता । वह उसकी सारी चीजों का ध्यान रखता है। पोर-परस्ती या समाधि-पूजा का यही रहस्य है। शामी जातियों में पादप-पूजा भी प्रचलित थी। सीरिया में भाज तक उसकी प्रतिष्ठा है। प्रस्तु, सूफियों की समाधि-पूजा परंपरागत है। वे प्राज भी पोर की समाधि को हज समझते हैं। सूफीमत में 'जिन' की बड़ी प्रतिष्ठा है। जिन की पद्धति-विशेष के संबंध में यह स्मरण रखना चाहिए कि उसके स्वरूप में देश. काल के अनुकूल परिवर्जन होता रहता है। उक्त नबियों में जिन का क्या स्थान था, यह हम ठीक ठीक नहीं कह सकते। परंतु इतना अवश्य जानते हैं कि उनमें उपवास और मुद्रा-विशेष का प्रचलन था। एलिजा यहा की प्राराधना में घंटो घुटनों के बीच सिर दवाए पड़ा रहता था। प्रतीत होता है कि एलिजा के पहले भी कतिपय योग-मुद्रामो का प्रचार था और नवी उनके अभ्यास में लगे रहते थे। उक्त नबियों के संबंध में अब तक जो कुछ निवेदन किया गया है उसका सारांश यह है कि यहा की प्रतिष्ठा से प्रथम ही इनानी जाति में जो गुह्य मंडलो थी उसमें उधास का पूरा विधान था। उवास के संपादन के लिये मादक दन्यो, विशेषतः सुरा का सेवन किया जाता था। सुरा के प्रभाव से जो प्रानंद उत्पन्न होता था (.) Israel p. 427 (२) I Kings XVII, 42 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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