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नागरीप्रचारिणी पत्रिका भी करना पड़ता था। शैमुअल और एरन इसके लिये ख्यात थे। मूसा भी यहाँ के पुजारी थे। । प्रायः लोग कह बैठते हैं कि पोर-परस्ती या समाधि-पूजा सूफियों में भारत के संसर्ग से आई। जो लोग शामी जातियों के इतिहास से सर्वथा अनभिज्ञ हैं, मानव-स्वभाव से भी अच्छी तरह परिचित नहीं हैं, उनकी बात जाने दीजिए। हम आप तो जानते हैं कि सूफियों की बलि-पूजा अति प्राचीन है। यह्वा के कट्टर कर्मकांडी कर उपासकों के प्रताप से बाल आदि प्राचीन देवताओं की प्रतिष्ठा नष्ट हो गई, किंतु उनका प्रभाव बराबर काम करता रहा । यहा की एकाकी सत्ता का विधान कर उसके फौजी उपासकों ने जिस शासन का अनुष्ठान किया वह इतना संकीर्ण एवं कठोर था कि उसमें हृदय का समुचित निर्वाह न हो सका। जिस बाल को भ्रष्ट कर यह्वा की प्रतिष्ठा हुई थी उसके कतिपय गुणों का आरोप यद्यपि यह। में हो गया तथापि उससे जनता की तृप्ति न हुई। उसने वली के रूप में बाल की पाराधना कायम की। फरिश्ते भी वास्तव में उन्हीं देवी-देवताओं के रूपांतर हैं जिनका नाश यह्वा अथवा अल्लाह के क्रूर भक्तों ने कर दिया था और जो मानव-स्वभाव की रक्षा के लिये फिर दूसरे रूप में प्रतिष्ठित हो गए। प्राचीन काल से ही यह धारणा चली आती है कि मरणरे के उपरांत भी जीवन रहता है। शव को मिट्टी कहकर उसका तिरस्कार नहीं किया जाता, प्रत्युत विधि-विधानों के साथ उसको दफनाया जाता है ।
(!) I Samuel IX 9
Religion of the Hebrews p. 75 (२) Israel p. 229,427,232
I Kings 11,6,9
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