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________________ तसव्वुफ प्रथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४५६ सामान्य न था। उनकी निराली चाल-ढाल तवा विसचण वेश-भूषा एक हंसी की चीज होती थी। वे नग्न या अर्धनम रहते और झुंड में चला करते थे। कभी कभी उनकी संख्या ४०० तक पहुँच जाती थी। उनकी मंडली में किसी संपन्न व्यक्ति का शामिल होना आश्चर्य की बात समझी जाती थी। उनमें एक मुखिया होता था जिसका मादेश सभी मानते थे। उसकी माझा के पालन और सेवा-शुभषा में लोग इतना तत्पर थे कि उसकी मंडलीवाले उसके लिये किसी भी गर्हित काम के करने में संकोच नहीं करते थे। संक्षेप में वह उनका गुरु या मुरशिद था। उनमें पीरी-मुरीदी की प्रतिष्ठा थी। उक्त नबियों के अतिरिक्त कुछ महानुभाव ऐसे भी थे जिनको लोग काहिन' या रोह कहते थे। नबी उल्लास एवं भावावेशवाला मक्त होता था। वह जनता में बहुत कुछ अलौकिक रूप में प्रतिहित रहता था। परंतु काहिन उससे सर्वथा भिन्न एक विचक्षण व्यक्ति होता था। लोग उसके पास भविष्य की चिंता में जाते थे। उससे शुभाशुभ और कुशल-मंगल के प्रश्न करते थे। जो बातें उनकी समझ में नहीं पाती थीं उनका रहस्य वे उससे जानना पाहते थे। वह मो शकुन-विचार में मग्न रहता था। स्वप्न तथा अन्य बाब लक्षणों के प्राधार पर वह अपनी सम्मति देता था। कभी कभी किसी जिन या प्रेत से भी उसे सहायता मिल जाती यो। संक्षेप में, वह एक ज्योतिषो के रूप में माना जाता था। उसमें सूफियों का नजूम था। कमी कमी उसको पुजारी का काम (.) Israel p. 442-3 A. H. of H. Civilization p. 139 Religion of the Hebrews p. 75,121 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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