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नागरीप्रचारिणी पत्रिका गुह्य-मंडली में भी अच्छी तरह था। भावावेश के परिणाम कभी कभी अनर्थकारी भी होते थे। उक्त नबियों में कतिपय ऐसे भी थे जो अपने शरीर पर घाव' करते थे और जनता पर प्रकट करते थे कि उन आघातों से उन्हें तनिक भी कष्ट नहीं होता था; क्योंकि उन पर देवता की असीम कृपा थी और उसके विज्ञापन के लिये ही वे वैसा किया करते थे। प्रागे चलकर सूफियों ने घाव को जो फूल समझ लिया उसका मुख्य कारण यही है। घाव तो उसे लोग तब समझते जब उन पर देवता सवार न होता। देवता के प्रसाद को फूल समझना ही उचित था। हिंदी कवि बिहारी ने भी सूफियों की देखादेखी 'सरसई' को कभी सूखने नहीं दिया, खांट खांटकर उसे बराबर ताजा रखा; क्योंकि उनकी नायिका को वह क्षत उसके प्रियतम से प्रसाद के रूप में मिला था जो उसके प्रेम को सदा हरा-भरा रखता था ।
अपनी शक्ति में कमी देख मनुष्य जिस देवता की कल्पना करता है उसकी शक्ति अपार होती है। फलतः देवता जिस व्यक्ति पर कृपालु होता है उसमें प्रसंभव को संभव करने की क्षमता प्रा जाती है। उक्त नबियों पर देवता की कृपा थी ही। जनता उनके पीछे लगी फिरती थी। लोग उनको अपना दुखड़ा सुनाते और उन्हें उपहार से लादते रहते थे। धनी-मानी भी उनकी शरण में जाते थे। पानी बरसाने, उपज बढ़ाने, रोगी को अच्छा करने क्या मृतकर को जिला देने तक की समता उनमें मानी जाती थी। करामात से वे जनता में अपनी धाक जमाए रहते थे और कभी कभी राजकीय आदोलनों में भी योग देते थे। उनका रहन-सहन
(१) Hosea VII, 14 , A History of H. Civilization p. 100 (२) Israel p. 446
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