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तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास
४५७ इलहाम के संपादन के लिये कुछ साधन भी अवश्य होते हैं । सच बात तो यह है कि कुछ मादक द्रव्यों के सेवन से मनुष्य की भावनाओं में जो विलक्षण सुखद परिवर्त्तन प्रा जाते हैं, प्राय: उसी को प्रारंभ काल में लोग देवता का प्रसाद समझते थे । उत्तेजक द्रव्यों के सेवन का प्रधान कारण आनंद की वह उमंग ही है जिसमें प्राणी संसार के झंझटों से मुक्त हो, कुछ काल के लिये, आनंद-घन और सम्राट् बन जाता है । मादक द्रव्यों का प्रयोग साधु-संत व्यर्थ ही नहीं करते; उनके सेवन से उनके फक्कड़पन में पूरी सहायता मिलती है 1 जिन नबियों के संबंध में हम विचार कर रहे हैं उनकी भी गुड़ मंडली की दृष्टि में "पृथिव्यां यानि कर्माणि जिह्वोपस्थ निमित्तत: । जिहोपस्थपरित्यागी कर्मणा किं करिष्यति” प्रतरश: सत्य था । उपस्थ में जिस रति और आनंद का विधान है उसका निदर्शन हम कर चुके हैं। जिहा के संबंध में यहाँ इतना जान लेना पर्याप्त है कि उक्त मंडली सुरापान खूब करती थी । जब सुग का रंग जमता था तब लोग नाना प्रकार की उछल-कूद, लपक-झपक और बकझक में मन हो जाते थे; और नाच-गान में इतनी तत्परता दिखाते थे कि उम्र उपद्रवों के कारण उनको मूच्र्छा प्रा जाती थी । फिर क्या था, उनके सिर पर देवता मा जाता बा और वे इलहाम की घोषणा करने लगते थे । नाच-गान की प्रथा बहुत पुरानी है । जीवमात्र में उसकी प्रवृत्ति देखी जाती है । सूफियों के 'समा' और तज्जनित 'हाल' का प्रचार नबियों की उक्त
(1) कुलार्णव तन्त्रम्, न० उ० १३३ ।
(२) At all times amongst all races, at all levels of culture, moments such as these have given rise to howling, dancing, jumping, rallying, quaking shaking, and orgastic manifestation of all sorts ( Carl kabu, Science and Religious Life p. 140
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