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नागरी प्रचारिणी पत्रिका
संतान' के नाम से ख्यात थे और विशेष विशेष अवसरों पर देवता के उतर आने के कारण प्रभुप्राते और खेलते थे । उनका दावा था कि देवता उनके सिर पर आते थे । वे भविष्य के मंगल के लिये भी कभी कभी कुछ निर्देश कर देते थे । कभी कभी तो उनका इष्टदेव का प्रत्यक्ष दर्शन मिल जाता था और उसकी आज्ञा उन्हें स्पष्ट सुनाई पड़ती थी । जब कभी किसी देव-स्थान या विशेष उत्सव में उन पर देवता आता था तब जो कुछ उनके मुँह से निकलता था वह उस देवता का प्रदेश समझा जाता था । उनकी भावभंगियाँ देवता की भावभंगियाँ होती थीं । कहने की आवश्यकता नहीं कि इलहाम ही उनको सामान्य जनता से भिन्न रखता और उनका देवता की कृपा का पात्र समझने की प्रेरणा करता था । जिन कर्मकांडी नबियों ने मादनभाव का अनुमोदन नहीं किया, 'पवित्र व्यभिचार' तथा अन्य देवी-देवताओं का विध्वंस किया और सेनानी यह्ना की छत्रच्छाया में उसकी एकाकी सत्ता की मुनादी की, उनकी भी इलहाम पर पूरी आस्था रही । इलहाम के आधार पर ही उनका मत खड़ा रहा । सूफियों ने इलहाम को कभी नहीं छोड़ा | उनके मत में, इलहाम पर सब का अधिकार है । रसूलों के लिये सूफीमत में 'वही' का विधान है और जनसामान्य के लिये इलहाम का ।
था,
(1) A History of Hebrew Civilization p. 361 Israel p. 444-6
The Religion of the Hebrews p. 116,171 Asianic Element in G. Civilization p. 192 (3) I Samuel X. 11,12
I Kings XIX. 18-19, XVII 1, 42
II Kings II. 15
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