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________________ वसन्युफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४५५ बचपन में अपनी मां से सुन चुकी थी कि गिरधर गोपाल की मूर्ति से उसका प्रणय होगा। फलत: उसे गिरधर गोपाल के प्रेम में 'लोकलाज' खानी पड़ी और संतमत में प्रा जाने के कारण कुछ अधिक उन्मत्त होना पड़ा। प्रांदाल' संभवत: देवदासी थी। वह माधवमूर्ति पर प्रासक्त थी और स्वयं कृष्ण से प्रणय चाहती थी। कृष्ण की मूर्ति में भगवान का व्यापक अमूर्त रूप भी विराजमान था। वास्तव में वही उसका प्रालंबन था और कहा जाता है कि उसी में वह समा गई। उसके प्रणय को कृष्ण ने स्वीकार किया। मसीह की कुमारी दुलहिनों के प्रेम में भी यही बात है। यही कारण है कि सूफी साफ साफ कह देते हैं कि इश्कमजाजी इश्कहकीकी का जीना है मौर उसी के प्राधार से इंसान खुदी का गुमान मिटा खुदा बन जाता है। सूफियों का प्रेम आज भी मूर्त से अमूर्त की ओर जाता है; वे योही अमूर्त की तान नहीं छोड़ते। हो, इतना अवश्य होता है कि सूफी अल्लाह को अमूर्त ही रहने देते हैं । वास्तव में इस प्रमूर्त का कारण धर्म-संकट ही है; नहीं तो इसका भी मादि-स्वरूप मूर्त ही था। कुरान तक इसके मूर्त स्वरूप का कायल है. गो किसी अन्य को इसका सानी नहीं मानता। निदान हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वास्तव में सूफियों के प्रेम का उदय उक्त देवदास एवं देवदासियों के बीच में हुप्रा और कर्मकांडी नबियों के घोर विरोध के कारण उसको परम प्रेम की पदवी मिली। नबियों के घोर विरोध का तात्पर्य यह नहीं है कि किसी नयी में मादनभाव के प्रति अनुराग नहीं रह गया । बायबिल में न जाने कितने स्थल ऐसे हैं जिनमें मादनभाव की पूरी प्रतिष्ठा है। मादनमाव के संबंध में अधिक न कह हमें केवल इतना कह देना है कि इलहाम के विधाता वे नबी ही थे जो शामियों में नबी (1) Studies in Tamil Literature p. 113 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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