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नागरीप्रचारिणी पत्रिका होता जा रहा था। अतएव यहा के कट्टर उपासकों ने मंदिरों के पवित्र व्यभिचार' का घोर विरोध किया। यहा एक रुद्र-सेनानी था। उसने नबियों से स्पष्ट कह दिया कि यदि बनी-इसराईल उसकी छत्रछाया में अन्य देवी-देवताओं को नष्ट-भ्रष्ट कर एकदम नहीं प्रा जाते तो उनका विनाश निश्चित है। फिर क्या था, देखते ही देखते यहा का आतंक छा गया और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर नष्ट कर दिए गए। उनके प्रणयी भक्त या तो यह्वा के संघ में भर्ती हो गए या प्रच्छन्न रूप से रति-व्यापार करते रहे। कर्मशील नबियों के घोर कांडों का प्रभाव सत्त्वशील प्रेमियों पर अच्छा ही पड़ा। देवदासियाँ परदे में बाहर जाने लगी और कामवासना का भाव मंद पड़ा। प्रेमियों के प्रत्यक्ष प्रियतम ज्यों ज्यों परोक्ष होने लगे त्यों त्यों उनका विरह बढ़ता और प्रेम खरा होता गया और अंत में उसने इस दबाव के कारण परम प्रेम का रूप धारण कर लिया। उपस्थ में जो संभोग की प्रवृत्ति थी वह इस उपासना में भी बनी रही और सूफी वस्ल के लिये सदैव तरसते रहे।
सूफियों के प्रेम के प्रसंग में जो कुछ निवेदन किया गया है उसके पुष्टीकरण में मीरा और प्रौदाल के प्रेम भी प्रमाण हैं । मीरा
(1) यहा के संबंध में लोकमान्य तिलकजी का मत है कि वह वैदिक 'यह' का रूपांतर है। यहा शब्द के लिखने की कोई परिपाटी निश्चित नहीं हो सकी है। इतना तो स्पष्ट है कि यह्वा एक विदेशी देवता था और उसके लिखने का प्राचीन रूप अधिकतर यह्वा के समान था। अतएव हमने इसी रूप का प्रयोग किया है। यहा के इतिहास पर विचार करने से अनेक तथ्यों का पता चलता है। (२) Jeromiah XXVI.7-16
I Kings XIV. 24,XV. 22' Amos II. 7 Hosea IV. 14
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