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वसन्युफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४५३ प्रेरणा से सद्भावना का उदय और संवेदना का प्रसार होता है और मनुष्य-मात्र का जिस पर समान अधिकार है। प्रस्तु, सूफीमत के उद्भव के संबंध में यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके मादन-भाव का उदय शामी जातियों के बीच में हुमा। अपनी पुरानी भावना तथा धारणा की रक्षा के लिये सारप्राही सूफियों ने अन्य जातियों के दर्शन तथा अध्यात्म से सहायता ले धीरे धीरे एक नवीन मत का सृजन किया। सूफीमत के उद्भव के संबंध में
जो मतमेद चल पड़े हैं उनके मूल में इस तथ्य की अवहेलना ही , काम करती है कि किसी भी मत के समीक्षण में सर्व-प्रथम इसकी भावना, स्वाभाविक वासना और संस्कारों पर ध्यान देना चाहिए। क्योकि उन्हीं के विशेष विशेष रूपों की रक्षा के लिये अन्यत्र से सामग्री ली जाती है और उसकी सहायता से औरों से कुछ पृथक किसी विशेष दर्शन का निर्माण किया जाता है। तसव्वुफ, नवप्लेटो-मत और वेदात में चिंतन की एकता होने पर भी उनके प्रसार में बड़ी विभिन्नता स्पष्ट झलकती है जो उनके प्रचारकों में देश-काल की भिन्नता के कारण मा जाती है। निदान, सूफोमत के उद्भव के लिये हमें शामी जातियों की प्रादिम प्रवृत्तियों को ढूँढना है। उन्हीं में उसके प्रादि-स्रोत का पता बगाना है, अन्यत्र कदापि नहीं।
हम पहले ही कह चुके है कि बाल, कदेश, ईस्टर प्रभृति देवीदेवतामों के वियोगी शामी जातियों में विरह जगा रहे थे। पर वास्तव में इनमें अधिकांश कामुक थे जो मंदिरों के अखाड़ों में अपनी काम-पला दिखाते तथा नर-नारियों को भ्रष्ट करते थे। देवदास तथा देवदासियाँ कामुको के शिकार हो गए थे। विरले ही व्यक्ति पातिव्रत के पालन में सफल हो रहे थे। वस्तुत: मंदिर व्यभिचार के महे बन गए थे। समाज का बन-बीर्य प्रतिदिन नष्ट
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