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नागरीप्रचारिणी पत्रिका उपलब्ध हो सकता है जब सहजानंद के उपासक भी सहज रति का प्रालंबन किसी शाश्वत सत्ता को बना लें। भारत में परमात्मा के साकार स्वरूप को खड़ा कर जिस माधुर्य-भाव का प्रचार किया गया उसी का प्रसार शामी जातियों में निराकार का पालंबन ले मादनभाव के रूप में हुआ।
शामी जातियों में बाल, कदेश, ईस्टर प्रभृति जो देवी-देवता थे उनके मंदिरों में समर्पित संतानों का जमघट था। उक्त मंदिरों में जो अतिथि आते थे उनके सत्कार का भार उन्हीं समर्पित संतानों पर था। अतिथि-सत्कार की उनमें इतनी प्रतिष्ठा थी कि किसी प्रकार का रति-दान पुण्य ही समझा जाता था। प्रणय की प्रतिष्ठा और सतीत्व की मर्यादा निर्धारित हो जाने से सत्त्व-प्रधान संतान ने उक्त दान से अपने को अलग रखना उचित समझा। अपने प्रियतम के संयोग के लिये वे सदैव तड़पती रहीं। किसी अन्य अतिथि को रति-दान दे उसके सुख से सुखी नहीं हुई। सूफियों के व्यापक विरह का उदय उन्हीं में हुआ।
यद्यपि संसार के सभी देशों में देवदासियों का विधान था; पर वास्तव में सूफियों का परम प्रेम उसी प्रेम का विकसित और परिमार्जित रूप है जिसका आभास हमें अभी अभी शामी जातियों की समर्पित संतानों में मिला है। इंज२ महोदय एवं कतिपय अन्य मनीषियों ने, ग्रीस की गुह्य टोलियों में मादन-भाव का प्रसार और प्लेटो के अलौकिक प्रेम के प्रतिपादन को देखकर, यह उचित समझा कि ग्रीस ही को मादन-भाव के प्रवर्तन का सारा श्रेय दिया जाय। परंतु, जैसा कि हम देख चुके हैं. उक्त गुह्य मंडलियों का संबंध किसी देश-विशेष से नहीं, प्रत्युत उस सत्व से है जिसकी
(.) The Religion of the Semites p. 515 (२) Christian Mysticism p. 369,349-55
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