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नागरीप्रचारिणी पत्रिका रति-भाव है जिसको लेकर सूफी साधना के क्षेत्र में उतरे थे और शामी सुधारकों के कट्टर विरोध के कारण उसको कुछ दिव्य बनाकर जनता के सामने रखते थे। प्रेम के संबंध में यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि वह एक मानसी प्रक्रिया है जिसका ध्येय आनंद है। अंतरायों के द्वारा रति में जितने विघ्न पड़ते हैं उनके कारण कामवासना और भी परिमार्जित हो प्रेम का रूप धारण करती है। इसी परिमार्जन के प्रसाद से रति को प्रेम की संज्ञा प्राप्त होती है। देवपरक होने पर यही रति भक्ति का रूप धारण करती है। प्रवृत्तिमार्गी इसलाम में विवाह आधा स्वर्ग समझा जाता था, अत: प्रेममार्गी सूफियों को रति के संबंध में इतना ढोंग नहीं रचना पड़ा जितना निवृत्ति-मार्गी मसीही संतों और उन्हीं की देखादेखी आधु'निक प्रेमपंथी कवियों को प्रतिदिन करना पड़ता है।
सूफियों ने जिस सहज रति पर अपना मत खड़ा किया उसका विरोध बहुत दिनों से शामी जातियों में हो रहा था। आदम के स्वर्ग से निकाले जाने की कथा के मूल में रति का निषेध स्पष्ट झलकता है। दावा के अनुरोध से आदम का पतन हुआ। स्त्री-पुरुष का सहज संबंध गर्हित समझा गया। फिर क्या था, शामी जातियों में रति की निंदा प्रारंभ हुई और आगे चलकर वह मसीही मत में पाखंड में परिणत हो गई। मूसा अपने पूर्वजों की भूमि पर अधिकार जमाना चाहते थे। मुहम्मद साहब को भी अरब, या बनी-इसमाईल का कई प्रकार से उत्थान करना था। संन्यास से उन्हें चिढ़ और संयत संभोग से प्रेम था। निदान मूसा और मुहम्मद ने प्रवृत्ति-मार्ग पर जोर दिया और संयत संभोग का विधान किया। पर मसीह और उनके प्रधान शिष्य पाल ने विरति का पत्रा पकड़ा। उनके प्रभाव से लोग लौकिक रति से विमुख हो गए। उधर प्लेटो ने गुह्य टोलियों की सहज रति को परम रवि का चोला
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