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________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४४७ के अष्टगुणों का आविर्भाव क्रमश: इब्राहीम, इसहाक, अयूप, जकरिया. यही, मूसा, ईसा एवं मुहम्मद साहब में हुआ। कहने का सारांश यह कि सूफीमत के प्रादि-स्रोत का पता लगाने के लिये इसलाम से परे, मुहम्मद साहब से प्रागे बढ़कर शामी जातियों की उस भावभूमि पर विचार करना चाहिए जिसके गर्भ में सूफीमत का मूल आज भी छिपा है। सूफीमत के मूल-स्रोत का पता लगाने के लिये यह परम प्रावश्यक है कि हम उसके सामान्य लक्षणों से भली भांति अभिज्ञ हों। इसमें तो किसी को भी संदेह नहीं हो सकता कि जिस वासना, भावना या धारणा के आधार पर सूफीमत का महल खड़ा किया गया उसके मूल में प्रेम का निवास है। प्रेम पर सूफियों का इतना व्यापक और गहरा अधिकार है कि लोग प्रेम को सूफीमत का पर्याय समझते हैं। सूफियों के पारमार्थिक प्रेम के संकेत पर पश्चिम में प्रेम का इतना गुणगान किया गया कि इसका लोक से कुछ संबंध ही न रह गया। प्रेम के सुनहरे पंख पर बैठकर लोग न जाने कहाँ कहाँ उड़ने लगे। बात यह थी कि मसीह का मूलमंत्र विराग था। सूफियो के प्रेम-पक्ष की प्रबलता अथवा उनके राग की वर्षा से जब यूरोप प्राप्तावित हो गया तब उसे मसीही मत में भी विरवि के साथ रवि का समावेश करना पड़ा। फलतः प्रेम में पाषंड का प्रचार होने लगा। आजकल प्रेम का लक्ष्य प्रेम ही जो सिद्ध किया जाता है, जगह जगह स्वर्गीय प्रेम के जो गीत गाए जाते हैं, प्रेम को दुनिया से जो अलग खड़ा किया जाता है, उसका प्रधान कारण उक्त धर्म-संकट ही है। मसीह की दुलहिनों अथवा मक संतो ने प्रेम को जो प्रलौकिक रूप दिया उसके मूल में वही (.) A Short History of Women p. 250 The Legacy of The Middle Ages p. 407 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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