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________________ ४४६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका तसव्वुफ को अंशत: प्राचीन आर्य-संस्कृति का प्रभ्युत्थान भी स्वीकार किया | i मुसलिम साहित्य के मर्मज्ञ पंडितों के सामने सूफीमत के उद्भव का प्रश्न बराबर बना रहा । अंत में उनको उचित जान पड़ा कि इसलाम की भाँति ही उसको भी कुरान का मत मान लिया जाय । निदान निकल्सन तथा ब्राउन सदृश मर्मज्ञों ने सूफीमत का मूल स्रोत कुरान में माना । निस्संदेह कुरान में कतिपय स्थल सूफियों के सर्वथा अनुकूल हैं और उन्हीं के आधार पर सदा से सूफी अपने मत को इसलाम के अंतर्गत सिद्ध करते आ रहे हैं । पर विचारणीय प्रश्न यहाँ पर केवल यह है कि सूफियों का समूचा अर्थ कहाँ तक वास्तव में अक्षरश: ठीक है । सूफियों ने शब्दों को तोड़-मरोड़कर इस्लाम और तसव्वुफ को एक करने की जो घोर चेष्टा की उसका प्रधान कारण है कि फकीर ( धर्मशास्त्री ) सदैव फकीरों के प्रतिकूल रहे हैं। यदि हम सूफियों की इस बात को मान भी लें कि उनका मत कुरान प्रतिपादित है तो भी सूफीमत का उद्भव कुरान से नहीं सिद्ध हो पाता । हम देख चुके हैं कि कुरान अथवा मुहम्मद साहब का मत प्राचीन परंपरा का एक विशेष रूप है I यही कारण है कि इसलाम में प्राचीन नबियों, विशेषत: मूसा, ईसा और दाऊद की पूरी प्रतिष्ठा है, और मुसलमान तारेत, इंजील और जबूर को आसमानी किताब मानते हैं । कुछ सूफियों का कहना है कि सूफीमत का प्रादम में बीज - वपन, नोह में अंकुर, इब्राहीम में कली, मूसा में विकास, मसीह में परिपाक एवं मुहम्मद में मधु का फलागम हुआ । एक और प्रवाद है कि सूफियों " ( 1 ) A Literary History of the Arabs p. 23. ( २ ) The Awariful Marif p. 7 (३) तसव्वुफ इसलाम, पृ० ३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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