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________________ तसव्वुफ अथवा सूफीमत का क्रमिक विकास ४४६ दे अलौकिक प्रेम का प्रतिपादन किया था। इधर सूफियों के प्रेम. प्रचार से रति को प्रोत्साहन मिला। फलत: यूरोप में मसीही संतो का उदय हुआ जो कुमारी मरियम या मसीह के प्रेम में मरने लगे। संयोग के लिये तड़प उठे। निदान, मसीह के निवृत्ति-प्रधान मार्ग में प्राध्यात्मिक प्रणय का स्वागत हुआ। लौकिक रति प्रलौकिक प्रबय में परिणत हुई। गत विवेचन से स्पष्ट प्रवगत होता है कि काम-वासना या रति-मावना को ही विरोध एवं अंतरायों के कारण प्रेम का रूप मिलता है और उन्हीं के कारण घोरे धीरे भीतर ही भीतर परिमार्जित होने से सामान्य रति को परम प्रेम की पदवी मिलती है। सूफी प्राज मो इश्क मजाजी को इश्क हकीकी का जीना समझते हैं और किसी 'बुत' से दिल लगाने में नहीं हिचकते। उनकी इस बुत-परस्ती का मकसद इश्क नहीं बका है। बका या परमानंद के लिये हो सुफी किसी प्राणी से प्रेम कर परम प्रियतम के विरह का अनुभव करते हैं। विचारणीय प्रश्न यहाँ पर यह उठता है कि सामान्य रति को परम रति की पदवी क्यों मिली १ सूफी किस प्रकार शक हकीकी को महत्व दे उसके रहस्योद्घाटन में लगे। शामी जातियों में रति का विरोध क्यों छिड़ा और लोग भीतर भीवर उसके स्वागत में मम क्यों रहे ? उनको अपने गुस-प्रयास में कहाँ तक सफलता मिली और अंत में साधन-माव को व्यापक रूप किस तरह मिल गया ? इसमें वो संदेह नहीं कि परम प्रेम के लिये प्रालंबन का परम होना अनिवार्य है। प्राणी परम के लिये लालायित तभी होता है जब सामान्य से उसे सुख-संतोष नहीं होता। सुख-संतोष के प्रभाव का प्रधान कारण भविष्य का मय है। प्राणो यदि मुखी रहे और मरण के भय से बच जाय तो उसे किसी परमेश्वर की भी ३४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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