SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्द-शक्ति का एक परिचय ४३७ लक्ष्यार्थ द्वारा प्रतीत होता है उसके लिये प्रार्थी व्यंजना होती है। पहली व्यंजना प्रयोजन को और दूसरी अन्य अर्थ को प्रकट करती है। जैसे उपर्युक्त उदाहरण में लड़के के दुराचरण और अविनय का अतिशय लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना द्वारा व्यंजित होता है और शिक्षक की अयोग्यता और सापराधता लक्ष्यसंभवा प्रार्थो व्यंजना द्वारा सूचित होती है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रार्थी व्यंजना शान्दी के अंतर्गत नहीं, किंतु उमसे भिन्न होती है। व्यंग्यसंभवा जब एक व्यंग्यार्थ दूसरे व्यंग्या को सूचित करता है तब उस अर्थ के व्यापार को व्यंग्यसंभवा प्रार्थी व्यंजना कहते हैं। दो कैदी प्राघो रात को निकल भागने का निश्चय कर चुके हैं। उनमें से एक कहता है, "देखो रजनीगंधा की कलियाँ कैसी खिल उठी है। उनके सौरम से पवन की गति भी मंद हो गई है।" इन वाक्यों के वाच्यार्थ से यह व्यंग्य सूचित होता है कि आधी रात हो गई है। चारों ओर नि:स्तब्धता छाई हुई है। इस व्यंग्यार्थ से उस प्रोवा कैदी के लिये एक और व्यंग्य की प्रतीति होती है। वह यह कि इस वेला में निकल भागना चाहिए। इस प्रकार एक व्यंग्य के द्वारा दूसरे व्यंग्य की उत्पत्ति होने से यह प्रारी व्यंजना व्यंग्यसंभवा कहलाती है। इन समी उदाहरखो में एक बात स्पष्ट है कि किसी न किसी प्रकार का वैशिष्ट्य ही प्रार्थी व्यंजना की प्रतीति का हेतु होता है। पहले उदाहरण में 'संध्या हो गई' इत्यादि में वका का वैशिष्ट्य ही व्यंजना का हेतु है। वजा की विशेषता से अपरिचित श्रोता के लिये उस वाक्य में कोई व्यंजना नहीं है। दूसरे उदाहरण में बोधन्य (अर्थात् जिससे कहा जाय उस) की विशेषता के कारण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy