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शब्द-शक्ति का एक परिचय
४३५ देख चुके हैं, एक ही अर्थ प्रधान है। दूसरा अर्थ केवल सूचित होता है। ऐसे स्थल में शाब्दी व्यंजना मानी जाती है, श्लेषालंकार नहीं।
लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना प्रयोजनवती लक्षणा में प्रयोजन व्यंग्य रहता है। जिस प्रयोजन अर्थात् व्यंग्यार्थ को सूचित करने के लिये लक्षणा का प्राश्रय लिया जाता है अर्थात् लाक्षणिक शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह (प्रयोजन अथवा व्यंग्य ) जिस शक्ति से प्रतीत होता है उसे लक्षणामूला शाब्दी व्यंजना कहते हैं। । जैसे 'बंबई बिलकुल समुद्र में बसा है' इस वाक्य में 'समुद्र में लाक्षणिक पद है। वक्ता उससे जन-पवन की प्रार्द्रता व्यंजित करना चाहता है। अभिधा यहाँ है ही नहीं। समुद्र में शहर नहीं बस सकता। अत: 'समुद्र का किनारा' अर्थ करना पड़ता है अर्थात् लक्षणा करनी पड़ती है। इसी लरया में मात्रय लेकर व्यंजना प्रयोजन को व्यंजित करती है। अत: यहाँ लक्षणामूना शान्दी व्यंजना है। प्रयोजनवती सभी सवानों में ऐसी व्यंजना होती है। प्राय: सभी लातहिक प्रयोगों में कुछ न कुछ व्यंग्य रहता है।
आर्थी व्यंजना
वाच्यसंभवा जब वाक्य के वाच्यार्थ से किसी अन्य अर्थ की व्यंजना होती है, तब उसे वाच्यसंभवा प्रार्थो व्यंजना कहते हैं। यदि कोई नित्य (१) देखो-यस्य प्रतीतिमाधातुपाया समुपास्यते । फले शम्दैकगम्येऽत्र व्यजनाबापरा लिया ।
(काम्यप्रकाश २।१४) (२) क्योंकि एक प्रयोगों में बम्ब नहीं सा रहता है । देखो--'सहिता उपयोजेन' (का. प्र. २ । १३)।
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