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शब्द-शक्ति का एक परिचय
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लिंग' अर्थात् गुण- विशेष द्वारा भी किसी किसी शब्द का वाच्यार्थ निरूपित होता है । जैसे 'क्रुद्ध मकरध्वज' से कामदेव का अर्थ निकलवा है 1 मकरध्वज का अर्थ समुद्र भी होता है पर समुद्र किसी युवक अथवा युवती पर क्रुद्ध नहीं हो सकता । इस क्रोध के लिंग से यहाँ अर्थ-निर्णय हो जाता है। दूसरे, शब्द की सन्निधि से भी कई शब्दों का अर्थ स्पष्ट हो जाता है । 'कर से साहव नाग' में नाग शब्द की समीपता से 'कर' का अर्थ 'हाथी की सूंड़' निश्चिन हो जाता है । कभी सामर्थ्य ही अर्थ निर्णायक हो जाती है । 'मधु से मत्त कोकिल' कहने से 'मधु' का अर्थ वसंत निश्चित हो जाता है । 'मधु के अन्य अर्थ भी होते हैं पर कोकिल को मत्त करने की सामर्थ्य वसंत में ही होती है । औचित्य के अनुसार भी शब्द का विशेष अर्थ निश्चित हो जाता है 1 'एक' शब्द संख्या और परिमाण दोनों का वाचक होता है पर 'वेद का एक परिचय' में एक का संख्यावाचक अर्थ ठीक नहीं बैठता अतः यहाँ एक का 'अल्प' अर्थ लेना चाहिए । शब्द का अर्थ निर्णय करने में. देश और काल का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान है । जो शब्द वैदिक काल में एक अर्थ में रूढ़ था वही आज दूसरे अर्थ में प्रयुक्त होता है । जो 'बाई' शब्द दक्षिण भारत में कुलीन महिला का बोध कराता है वही उत्तर भारत में प्रायः वारांगना का बोध कराता है । व्यक्ति अर्थात् लिंग-भेद से भी अर्थ-निर्णय कभी कभी हो जाता है । 'बुधि छ बल करि राखिहै। पति तेरी नव बाल' – यहाँ पति का अर्थ लाज है । यदि उसका प्रयोग पुंल्लिंग में हुआ होता तो अर्थ दूसरा होता । वैदिक संस्कृत जैसी सस्वर भाषाओं में स्वर भी
( १ ) लिंग का अर्थ यहाँ तो ऐसा धर्म अथवा गुम है जिससे एक द्रव्य की अन्य द्रव्यों से मित्रता प्रकट हो पर मीमांसा में लिंग का अर्थ अधिक व्यापक है देखो - प्रतिः जिंग...... ( न्याय - माला•
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