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शब्द-शक्ति का एक परिचय एक तीसरा अर्थ निकलता है। सीधे शब्द से ( लक्षणा अथवा प्रमिधा द्वारा ) एक ही बात का बोध होता है पर सुननेवाले को उसी से न जाने कितनी दूसरी बातें सूझ जाती हैं। शन्द की यह मुझानेवाली शक्ति प्रभिधा अथवा लक्षणा नहीं हो सकती। यह एक मानी' हुई बात है कि शब्द की शक्ति एक प्रकार का अर्थ-बोध करा चुकने पर क्षीण हो जाती है। उसका एक व्यापार एक ही अर्थ का बोध करा सकता है। अभिधा अपना काम करके चुप हो जाती है। लक्षणा अपना अर्थ सिद्ध करके विरत हो जाती है। अतः
दोनों शक्तियों के क्षीण हो जाने पर शन्द जिस न्य जना का स्वरूप
- शक्ति से किसी दूसरे प्रर्थ को सूचित करता है उसे व्यंजना कहते हैं। इस व्यंजना शक्ति द्वारा बोम्य अर्थ को व्यंग्यार्थ और ऐसे अर्थ से संपन्न शब्द को व्यंजक कहते हैं ।
शब्द की अन्य दो शक्तियां शब्द के द्वारा ही अपना काम करती हैं पर व्यंजना शक्ति कमी कमी अर्थ के द्वारा भी अपना
___ व्यापार करती है, इसी से व्यंजना शाब्दी व्यंजना के दो भेद
और प्रार्थी-दो प्रकार की मानी गई है। शान्दी व्यंजना कभी अभिषामूला होती है, कभी लक्षणामूला; और प्रार्थी व्यंजना कमी वाच्यार्थसंभवा, कमी लक्ष्यार्थसंभवा और कमी व्यंग्यार्थसंभवा होती है। इस प्रकार शाब्दी व्यजना दो प्रकार की पौर प्रार्थी तीन प्रकार की होती है।
'अभिधामूला शाब्दी व्यंजना प्रमिषा द्वारा मी एक शब्द से अनेक प्रयों का दोष होता है। ऐसा क्यों होता है ? इस प्रश्न का उत्तर प्रर्थाविशय का शाल
(1) 'गन्यबुद्धिर्मपा विरम्य म्यापारामावः' । मट्टलोलटप्रभृति कष विद्वानों ने इस सिरांत का विरोध किया था पर उनका मम्मट ने अपने काम्पप्रकाश में मुंहतोड स्तर दिया है। देखो-काम्यप्रकाश, चतुर्थ उक्लास ।
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