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शब्द-शक्ति का एक परिचय ४२६ से चतुर का बोध होता है। यह उसका प्रसिद्ध अर्थ है। कोई भी साधारण मनुष्य इसे लक्ष्यार्थ नहीं मान सकता। केवल शास्त्रज्ञ विद्वान् कुशल से कुश लानेवाले का अर्थ समझता है। अत: उसकी दृष्टि में यह ऐतिहासिक अर्थ मुख्यार्थ है; और प्राजकल का प्रसिद्ध अर्थ लाक्षणिक अर्थ है। इस प्रकार शास्त्रकार और शासन अवश्य इन रूढ़ प्रौर प्रसिद्ध शब्दों को अप्रसिद्ध और लाक्षणिक मान सकते हैं पर जन साधारण नहीं। इसी से प्राचार्यों ने निरूढ़ लसणा को केवल शालोपयोगी समझकर उसका निर्देश मात्र कर दिया है।
व्यंजना के विचार से भी रूढ़ि में कोई चमत्कार नहीं रहता। केवल प्रयोजनवती लक्षणा में व्यंग्य रहता है; इससे उसी के दो भेद और किए जाते हैं-गूढव्यंग्या और अगूढव्यंग्या। अगूढव्यंग्या लक्षणा का प्रयोजन सबको स्पष्ट समझ में आ जाता है पर गूढन्यंग्या के प्रयोजन को केवल चतुर जन समझ पाते हैं। जैसे वह बालक सिंह है-इस वाक्य में लक्षणा का व्यंग्य प्रयोजन बिलकुल स्पष्ट है। सिंह कहने से बालक के विशेष बल और वीर्य की व्यंजना होती है। अत: सिंह में प्रगूढा लक्षणा है। उसी अर्थ में यदि कहें कि इस बालक की गर्जना सुनकर सभी प्रतिवादी चुप हो गए तो 'गर्जना' शब्द में गूढा लक्षणा होती है। 'गर्जना' का लाणिक अर्थ-प्रर्थात् प्रोजस्वी वक्तृता का अर्थ-सबको समझ में प्राता है पर साथ ही इस लक्षणा से लड़के का सिंह के समान तेजस्वी और विजयी होना व्यंग्य है; इस व्यंग्य को समझदार ही समझ पाते हैं। क्योंकि विचार करने पर यह समझ में माता है कि बालक पर सिंह का माराप किया गया है और तब कहीं भयंजना का परदा हटता है। इसी प्रकार अधिकांश मुहाविरेदार प्रयोगों में गृढव्यंग्या ( अर्थात् छिपी ) लक्षणा होती है।
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