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शब्द-शक्ति का एक परिचय
४२७ हरि पर सरवर सर पर गिरिवर वापर फूले कंज पराग । रुचिर कपोत बसे ता ऊपर, ता ऊपर अमृतफल लाग ।। फल पर पुहुप, पुहुप पर पल्लव, तापर सुक पिक मृगमद काग। खंजन धनुष चंद्रमा ऊपर. ता ऊपर एक मनिधर नाग ।।
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(सूरदास) इस एक ही पद में साम्यवसाना के अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। राषा के अंग अंग का सौंदर्य-वर्णन कवि ने उपमानों द्वारा ही कर दिया है। उपमानों में उपमेयों का अध्यवसान ( तादात्म्य ) हो गया है। यही साध्यवसाना लक्षणा रूपकातिशयोक्ति अलंकार के मूल में रहती है। और इस लक्षणा का प्रयोग कवि की उक्तियों में ही अधिक देख पड़ता है। इसी से यहाँ काव्य से उदाहरण खेना ही समीचीन जान पड़ा।
(५) शुद्धा सारोपा लक्षणा (१) दवा मेरा जीवन है। (२) घृत आयु है। (३) दूध ही मेरा बल है। (४) अविरत सुख भी दुःख है। (५) यह ग्रंथ रघुवंश है। (६) वह ब्राह्मण पूरा बढ़ाई है।
इन सब उदाहरणों में प्रारोप प्रत्यक्ष देख पड़ रहा है। परमारोप का निमित्त संबंध-सादृश्य नहीं है। दवा पर जीवन का प्रारोप हुमा है क्योंकि दोनों में कार्य-कारण संबंध है। इसी प्रकार घृत और दूध पर मायु और बल का प्रारोप जन्य-जनक संबंध से हुमा
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