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नागरीप्रचारिणी पत्रिका पगड़ी का मुख्यार्थ साथ रहता है, छूटता नहीं है। इसी प्रकार 'बंदूक'
और 'भाले-बरछे' इन अखों को लिए हुए लोगों का बोध कराते हैं। इन अखों का उपादान स्पष्ट ही है। भय बंदूक और उसके चलानेवाले पुरुष दोनों से ही होता है। अंतिम वाक्य के 'काए' से कुत्ताबिल्ली, कीट-पतंगादि दही को दूषित करनेवाले सभी जंतुओं का अभिप्राय लिया जाता है। इस विचित्र लक्षणा में भी 'कोमा' शब्द का अर्थ छटा नहीं है। कौओं का अर्थ और अधिक बढ़ गया है।
(३) गाणी सारोपा लक्षणा (१) वह बालक सिंह है। (२) उसका मुखकमल खिल उठा। (३) वह स्त्री गाय नहीं, साँपिन है । (४) मेरा लड़का हंस है। (५) सच्चा कवि भमर होता है ।
इन सभी उदाहरणों में गुण-सादृश्य के कारण आरोप हुआ है। बालक सिंह के समान वीर है। मुख सौंदर्य में कमल के समान है। स्त्री गाय जैसी सीधी नहीं, साँपिन जैसी दुष्ट और कुटिल है। लड़का हंस के समान विवेकी है। कवि अपने रस-संग्रह करने के गुण में भ्रमर के समान है। इस प्रकार इन सबमें लक्षणा का निमित्त गुण देख पड़ता है। अतः सब में गौणी लक्षणा हैं। मारोप-विषय और प्रारोप्यमाण दोनों का स्पष्ट उल्लेख' होने से लक्षणा सारोपा है।
(४) गौणी साध्यवासना लक्षणा
अद्भुत एक अनूपम बाग। जुगल कमल पर गज क्रीडत है, तापर सिंह करत अमुराग॥
(१) देखो-काव्यप्रकाश-सारोपाऽन्या तु यत्रोको विषयी विषयस्तथा । ( १)
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