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नागरी प्रचारिणी पत्रिका
भावार्थ — लोग कहने लगे कि महाराजा रणजीतदेव से न डरकर एक बड़े सरदार से वैर किया। तुमने ( घमंडचंद कटोच राजा ने ) पठानिए ( पठान के राजा ), गुलेरिए (गुलेर के राजा), डडुहाल ( डाडा के राजा ) को छोड़कर जमुनाल ( जसुत्रों के राजा) से जाकर मित्रता की; देश को जलाकर और लूटकर खराब किया । पठियार ( किला ) लेकर क्या फल पाया ? इस राजा घमंडचंद को कौन समझावे कि वह गले में तलवार रख राजा के पुत्र ( वृजराजदेव ) की शरण में जाए ।
कवित्त किया ना विचार पठियार जो छिनाइ लीन्हा,
वैर एहि काल चंब्याल से जगाया है । वैरी है गुलेर तेरा मेल ना पठाणियाँ सों,
एक अभिरायसिंह तेरे साथ आयो है ॥ कहा अब कीजे तन छोजे धूम देखत हीं,
बैठ के नादान सारे देश को जरायो है । कहे एक राखी यों घुमंडाजू को, वाणी
कौन के भरोसे रणजीतदे रुसायो है ॥ २४ ॥ भावार्थ - राजा घुमंडचंद कटाच की एक रानी राजा से पूछती है कि आपने बिना विचार किए पठियार का दुर्ग छीनकर चंडयाल राजा से वैर कर लिया है । गुलेर तुम्हारा पहले से ही वैरी है, पठानिए ( पठानकोट के राजा ) से भी तुम्हारी कोई मित्रता नहीं; एक अभिरायसिंह (जसुपति) तुम्हारे साथ आया है। अब क्या करें ? धुआँ देखकर दिल दुखी है । आपने नादान बैठकर सारे देश को जला दिया है। आपने किसके भरोसे रणजीतदेव को क्रोधित किया है ? दोहा - उत पुनि होत प्रभात ही श्री वृजराज कुमार । साथ सकल असुअर ले गया बयासा पार ॥२५॥
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