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________________ द्विगर्त ( डुगर) देश के कवि दोहा-किए जाइ ज्वालामुखी डेरे जुरि सम भूप । भाइ मिल्यो उदुमाल वहाँ गोपीचंद अनूप ॥२०॥ भावार्थ-फिर सब राजाओं ने मिलकर ज्वालामुखी में डेरा किया। वहाँ डडहाल ( डाडापति) राजा गोपीचंद मा मिला। सवैया बोरी नदौन कटोच तबै जसुमाल समेत कलेशर पाए । क्याहु न लंधि सके जमुत्रालय दीजिय जानि घनो हुलसाए । फौज कलूक पठाइ गुहासन रात में आप वहाँ पुनि माए । सूरन को समुझाय भले तत्काल कलेशरहुँ को सिधाए ॥२१॥ भावार्थ-फिर कटोच नादोन को छोड़कर जसुमालों के समेत कलेशर में आ गए। जमुमाल वहाँ लांघकर गए और खुशी से कुछ फौज गुहासन को भेज फिर वहीं मा गए। सब शूर-वीरों को समझाकर कलेशर को सिधारे । दोहा-देखि जरत निज देश को लोक बड़ो डरपाइ । घर घर ऐसे कहत हैं आपस में प्रकुलाइ ॥ २२ ॥ भावार्थ-अपने देश को जलता हुमा देखकर उस देश के लोग भयमीत हुए । प्रापस में व्याकुलता से घर घर में ऐसा कहने लगे। कविच भए हो न मीत रणजीतदेव भूपती को, बांग्या तुम्हे वैर जो मुरेफा सरदार से। बोरयो हैं पठानिए गुलेर उडुहाल तुम्हें, कौन काज मेल कीनो जाइ जमुमाल सेो । देश को जरायो प्री लुटाय के खराब करयो, दत्त भने कौन फल पायो पठियार सौ । कौन समुझावे इस मूरख घमंडाजू को, कोष कर खंता मिल भूपति कुमार सौ ॥२३॥ ___३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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