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________________ शब्द-शक्ति का एक परिचय ४२१ दो ही प्रकार के शब्द शेष रह जाते हैं-धातु और मातिपदिक (अव्युत्पन्न रूढ़ शब्द )। इस प्रकार भाषा रूढ़ और यौगिकइन्हों दो प्रकार के शब्दों से बनती है पर अर्थाविशय की दृष्टि से एक प्रकार के शब्द ऐसे होते हैं जो यौगिक होते हुए भी रूढ हो जाते हैं। ऐसे शब्द योगरूढ़ कहे जाते हैं। यह शब्द की तीसरी अवस्था है। जैसे धवलगृह का अर्थ होता है 'सफेदी किया हुप्रा घर'; पर धीरे धीरे धवलगृह का-प्रयोगाविशय से-'महल' अर्थ होने लगा। इस अवस्था में धवलगृह योगरूढ़ शब्द है। धवल: गृहः और धवलगृह का अब पर्याय जैसा व्यवहार नहीं हो सकता। यही योगरूढ़ि संस्कृत के नित्य समासों का मूल कारण है। कृष्णसर्पः है तो यौगिक शब्द, पर घोरे धीरे उसका संकेत एक सर्प-विशेष में रूढ़ हो गया है अत: वह समस्तावस्था में ही उस विशेष अर्थ का बोध करा सकता है, अर्थात् कृष्णसर्पः में नित्य समास है। कुछ विद्वानों ने तो सभी समासों को योगरूढ़ माना है। विग्रह-वाक्य से समास में अर्थ-वैशिष्टय अवश्य रहता है; इसी से नैयायिकों के अनुसार समास' में एक विशेष शक्ति प्रा जाती है। सच पूछा जाय तो प्रयोगातिशय से समृद्ध भाषा के अधिक शब्दों में योगरूढ़ि ही पाई जाती है। प्रर्थातिशय के विद्यार्थी के लिये योगरूढ़ि२ का अध्ययन बड़ा लाभकर होता है। (लक्षणा) भाषा और बोली दोनों में शब्दों का मुख्यार्थ ही सदा पर्याप्त नहीं होता। प्रयोका असाक्षात्संकेतित अर्थों में भी कमी कमी शब्दों का प्रयोग करते हैं। शब्दों को अपने बाबा का स्वरूप मुख्य प्रर्थ से संबद्ध दूसरे प्रर्थों का बोध कराना पड़ता है। कमी तो ऐसी रूढ़ि बन जाती है जिससे वे (,) समासे खलु मिरव शक्तिः । (शबणकिप्रकाशिका) २) योगड़ि की दूसरी परिभाषा भी मिलती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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