SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२० नागरीप्रचारिणी पत्रिका मानना अज्ञान की स्वीकृति मात्र है। सभी शब्दों की उत्पत्ति धातु और प्रत्यय के योग से होती है। जिन शब्दों की उत्पत्ति अज्ञात रहती है उन्हें व्यवहारानुरोध से रूढ़ मान [ग-लिया जाता है। वास्तव में वे 'अव्यक्तयोग' रूढ़ि का भाषा-वैज्ञा " मात्र हैं, उनके योगार्थ का हमें ज्ञान नहीं है। अत: धातु में हम शब्द की निर्योग और रूढ़ अवस्था का दर्शन करते हैं। दूसरी अवस्था में धातु से प्रत्यय का योग होता है और यौगिक शब्द सामने आता है । संस्कृत व्याकरण की पाँचों वृत्तियाँ। इस अवस्था का सुंदर निदर्शन कराती हैं। पहले धातु से कृत् प्रत्यय लगता है जैसे पच धातु से पाचक बनता है । फिर धातुज शब्द से तद्धित प्रत्यय लगता है तो पाचकता आदि शब्द बन जाते हैं। इन दोनों प्रकार के यौगिक शब्दों से समास बन जाते हैं। एक यौगिक शब्द दूसरे यौगिक शब्द से मिलकर एक समस्त ( यौगिक ) शब्द को जन्म देता है। कभी कभी दो शब्द इतने अधिक मिल जाते हैं कि उनमें से एक अपना अस्तित्व ही खो बैठता है। शब्द की इस वृत्ति को एकशेष कहते हैं। जैसे माता और पिता का योग होकर एक यौगिक शब्द बनता है 'पितरौ'। इन चार वृत्तियों से नाम-शब्द ही बनते हैं। पर कभी कभी नाम के योग से धातुएं भी बनती हैं। जैसे पाचक से पाचकायते बनता है। ऐसी योगज धातुएं नामधातु कहलाती हैं और उनकी वृत्ति 'धातुवृत्ति' कहलाती है । विचारपूर्वक देखा जाय तो भाषा के सभी यौगिक शब्द इन पांच वृत्तियों के अंतर्गत आ जाते हैं। कदंत, तद्धिांत, समास, एकशेष और नामधातुओं को निकाल लेने पर भाषा में केवल (,) 'वृत्ति' व्याकरण में किसी भी ऐसी पौगिक रचना को कहते हैं जिसका विग्रह किया जा सके। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy