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शब्द-शक्ति का एक परिचय ४१७ साध्य होती है अत: वह साध्य वस्तुधर्म उपाधि है। इस प्रकार उपाधि' के चार भेद होते हैं—जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य ( अर्थात् संज्ञा अथवा व्यक्ति)। इन चारों में ही शब्द का संकेत रहता है। इसी से प्राचीन वैयाकरण और मम्मट, जगन्नाथ मादि प्रालंकारिक उपाधिवादी अथवा जात्यादिवादी कहे जाते हैं। ___यह संकेतित अर्थ का चतुर्धा भेद व्यवहार में बड़ा उपादेय होता है। व्यंजना आदि काव्यापेक्षित वस्तुओं की भी इससे
. सहज ही में सिद्धि हो जाती है। पर मीमामीमांसकों का भाव
"सक इन उपाधिवादियों के सिद्धांत को सदोष और उसका निराकरण
" समझते हैं। उपाधि और विशेषण में कोई भेद नहीं है। इससे मीमांसक कहते हैं कि केवल जाति को ही उपाधि मानने से सब काम चल सकता है। गुण, क्रिया तथा ( व्यक्तिवाचक ) संज्ञा, सभी में तो एक सामान्य जाति होती है। हिम, शंख, दुग्ध प्रादि अनेक पदार्थ सफेद होते हैं पर इन सबकी
उपाधि
वस्तुधर्म
वयरच्छासनिवेशित (संज्ञा वा ग्य)
सिर
साध्य (क्रिया)
प्राप्रद (जाति) विशेषाधान हेतु (गुरु)
(२) दो महामाव्य-तुष्टपी शम्दाना प्रवृत्तिः जातिया: गुरुशम्दाः क्रियाशयाः परधाराम्दारचति ।
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