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________________ शब्द-शक्ति का एक परिचय ४१५ व्यंग्य जाति का भी बोध कराता है। इस प्रकार इस 'वाद' में केवलव्यक्तिवाद और केवलजातिवाद का सुंदर समन्वय हो जाता है। व्यक्तिवाद के अनुसार व्यक्ति शब्द का मुख्यार्थ है। जाति व्यक्ति से उपलक्षित होती है। जातिवाद में क्रम उलट जाता है। जाति की उपस्थिति पहले होती है। फिर जाति में ही व्यक्ति का प्राक्षेप कर लिया जाता है। माति-विशिष्टवाद के अनुसार विशेषण और विशेष्य-जाति और व्यक्ति दोनों बराबरी पर रहते हैं। शब्द से दोनों की अर्थोपस्थिति एक ही साथ होती है। इस प्रकार जाति और व्यक्ति दोनों ही शब्द के मुख्य अर्थ होते हैं। ___ नागेश, दीक्षित आदि वैयाकरण इसी विशिष्ट-शक्तिवाद को मानते थे। काशी के नवीन संप्रदाय ने इस वाद में कुछ सुधार किया है। व्यवहार सदा जाति और ___ खंडशः शक्तिवाद व्यक्ति दोनों का शब्द से एक ही साथ बोध (परिष्कार स्कूल नहीं कराना चाहता। अत: इन नवीन ... करणों ने विशिष्टवाद का थोड़ा और परिष्कार किया। उहान शब्द में खरडशः शक्ति का प्रतिपादन किया; अर्थात् उनमें अनुसार किसी शब्द से जाति और व्यक्ति की एक साथ उपस्थिति तो होती है पर वक्का इच्छानुसार चाहे जिस अंश का मोष (लोप) अथवा (मारोप) कर सकता है; इस प्रकार शब्द का व्यावहारिक प्रर्थ कमी केवल जाति हो सकता है, कभी केवल व्यक्ति। इस परिष्कृत रूप में यह वाद काशी में प्राज भी चल रहा है। भाजकल के वैयाकरणों के समाज में परिष्कार का बड़ा प्रादर है। (१)देखो-यच्याकृतिजातबस्तु पदार्थाः । (न्यायसूत्र II. २ । १८) और............जाति-विशिष्टयती एव शकिकल्पनात् । (तर-दीपिका) (२) इस परिकार के पोषक काशी के तीन विद्वान् थे-काशीनाष, राजाराम तथा बालशाची। ये तीने स्वर्गीय वैयाकरण परिकार-स्कूल के त्रिमुनि कहे पाते हैं। इनके अध्ययन से अर्थ-विचार का बड़ा उपकार हो सकता है। था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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