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________________ ४१२ नागरी प्रचारिणी पत्रिका पर व्यावहारिक शब्द को वे भी नैयायिकों की भाँति अनित्य मानते हैं । मीमांसकों की नाई वे ध्वनि और वर्ण को नित्य नहीं मानते । व्यवहार से ही ध्वन्यात्मक शब्द की अनित्यता स्पष्ट है । शब्द के नाद और रूप में लोप, आगम, विपर्यय, विकार आदि कार्य प्रत्यक्ष देख पड़ते हैं I इसी प्रकार संकेत का विषय क्या है, अर्थात् संकेत किस वस्तु में होता है— इस प्रश्न पर भी बड़ा मतभेद है । नैयायिक, संकेतित श्रर्थं श्रर्थात् मीमांसक, बौद्ध आदि सभी अपना अपना संकेत का विषय एक निराला 'वाद' लेकर सामने आते हैं I नैयायिक तो सदा से व्यवहार और लोक की दुहाई देते आए हैं । यद्यपि तर्क के मंदिर में पहुँचने पर वे लोक को बिलकुल ही भूल जाते हैं तो भी वे प्रारंभ सामने की देखी-सुनी वस्तुओं से ही करते 1 नित्य के व्यवहार में व्यक्ति ही सामने आता है । व्यक्ति में ही प्रवृत्ति और निवृत्ति की योग्यता रहती है । 'गाय लाओ' में गो-व्यक्ति का लाना और 'गाय न लाओ' में गो-व्यक्ति ही का न लाना अभिप्रेत है । लाना और न लाना आदि सप्रयोजन क्रियाएँ गो-व्यक्ति में ही घटित हो सकती हैं; अत: व्यक्ति में संकेत मानना चाहिए । प्रयोक्ता सदा शब्द से एक अथवा अनेक व्यक्तियों का बोध कराता है अतः शब्द का वाच्यार्थ केवल व्यक्तिवाद व्यक्ति' ही हो सकता है। यही व्यक्ति जाति का उपलक्षण होता है, इसी लिये शब्द से जाति का भी बोध होता है । ध्वनि । दोनों के लिये वे शब्द का प्रयोग करते हैं। देखो - ' तस्मात् ध्वनिः शब्द:' और 'तहि स्फोटः शब्दः ' । ( महाभाष्य ) ( १ ) शब्दस्य व्यक्तिरेव वाच्या । ( प्रदीप ) (२) जाते स्तूपलचणभावेनाश्रयणादानन्दयादिदे । पानवकाशः । ( कैयट ) www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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