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________________ शब्द-शक्ति का एक परिचय ४०६ में शिरोमणि है तथापि इन अन्य उपायों का भी संकेत ग्रह के लिये कम महत्त्व नहीं है । जिस इस प्रकार इन व्यवहारादि ग्राहकों द्वारा संकेत का ज्ञान हो जाने पर ही शाब्द बोध होता है अर्थात् संकेत की सहायता से ही शब्द द्वारा अर्थ- बाघ होता है । अतः प्रत्येक अर्थ में संकेत का होना स्वयं सिद्ध सा है । किसी में साक्षात् संकेत रहता है और किसी में साक्षात् संकेत । अर्थ से जिस शब्द का संबंध लोगों में प्रसिद्ध है उस अर्थ में उस शब्द का सीधा साक्षात् संकंत रहता है, जैसे 'बैल' गाड़ी खींच रहा है - इस वाक्य में बैल शब्द का अर्थ लोक- प्रसिद्ध है, इससे बैल शब्द का अपने अर्थ में साक्षात् संकेत है । पर जब कभी कोई शब्द प्रयोजनवश किसी श्रंप्रसिद्ध अर्थ से संबंध जोड़ लेता है, उसका संकेत साक्षात् नहीं रह जाता । उस शब्द का एक प्रसिद्ध अर्थ में संकेत रहता है अत: दूसरे अर्थ में उसका संकेत उस प्रसिद्ध अर्थ की परंपरा में से होकर प्राता है जैसे यह लड़का बैल है - इस वाक्य में बैल शब्द का संकेत 'बैल' में न होकर बैल के सादृश्य में हैं। बैल शब्द का संकेत मुख्य अर्थ में से होकर दूसरे अर्थ में पहुँचता है। अत: बैल शब्द का 'पशु' में साचात्संकेत है और मूर्ख के अर्थ में प्रसाचात्संकेत । साक्षात्संकेतित अर्थवाले शब्द को वाचक कहते हैं, इससे पहले वाक्य का बैल शब्द ही वाचक है, दूसरे वाक्य का नहीं । यह वाचक शब्द जिस शक्ति के द्वारा अपने अर्थ का बोध कराता है उसे अभिधा कहते हैं । वाचक शब्द से अर्थ-बोध कैसे होता है ? इस प्रश्न को समफ़ने के लिये संकेत का सम्यकू ज्ञान अपेक्षित है । संकेत क्या है ? 'संकेत' के घ यह ध्यान देने की बात है कि यहाँ 'शक्ति' वैयाकरथों के में प्रयुक्त हुआ है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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