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• शब्द-शक्ति का एक परिचय
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अर्थात् अभिघा, लक्षणा तथा व्यंजना को — और उन शक्तियों के
प्राश्रयभूत वाचक, लक्षक तथा व्यंजक तीनों प्रकार के शब्दों को अपना प्रधान विषय बनाता है । शब्द की व्याख्या में थोड़ी अर्थ की भी अर्थ के लिये ही तो शब्द व्यापार
प्रबंध में व्याख्यात विषय (या वर्ण्य विषय )
व्याख्या आ ही जाती है।
करता
है 1
( अभिधा )
वाचक शब्द की शास्त्रीय व्याख्या
शास्त्रीय ढंग से सूत्र -रूप में कहें तो साचात् संकेतित' अर्थ को कहनेवाला शब्द वाचक कहलाता है 1 साधारणतया व्यवहार में देखा जाता है कि लोगों में जो 'संकेत' अथवा 'समय' प्रचलित रहता है उसी के सहारे शब्द अपने अर्थ का बोध कराता है से श्रोता को अर्थ का बोध नहीं हो सकता । यदि कहा जाय कि 'गाय लाओ' तो वह इस उसके लिये इन शब्दों में कोई नहीं कि इन शब्दों से किस
वह जानता ही
पर वही मनुष्य किसी जान
अर्थात् केवल शब्द किसी अनभिज्ञ से वाक्य से क्या समझ सकता है ? अर्थ ही नहीं है। अर्थ की ओर संकेत किया गया है । कार को कहते सुनता है कि गाय लाभो और देखता है कि दूसरा गाय ले आता है । इन दोनों के इस व्यवहार को देखकर वह वाक्य का अर्थ समझ लेता है । इसी प्रकार व्यवहार से वह 'गाय बाँधो', 'घोड़ा लाभो' आदि वाक्यों का भी ज्ञान प्राप्त कर लेता है । कुछ वाक्यों का ज्ञान हो जाने पर वह अपनी अन्वयव्यतिरेकवाली बुद्धि से 'गाय' और 'लाभ' आदि को पृथक् पृथक्
(१) साचात्संकेतितमर्च योऽभिधत्ते स वाचकः । ( काव्यप्रकाश )
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