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________________ ४०६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका समझने लगता है। पहली बार उसने वाक्य का अर्थ तो समझ लिया था पर उसका व्याकरण न समझ सका था। धीरे धीरे 'गाय' शब्द को कई अन्य शब्दों के साथ उसी व्यक्ति का अर्थ-बोध कराते हुए देखकर उसका अर्थ समझ लिया, अर्थात् यह जान लिया कि गाय शब्द का किस वस्तु-विशेष में संकेत है। इसी प्रकार 'लामो' क्रिया का कई वाक्यों में अन्वय देखकर व्यतिरेक द्वारा उसका भी संकेत समझ लेता है। अब संकेत' ज्ञान हो जाने से वे ही शब्द उसे अर्थ का बोध कराने लगते हैं। बालक की भाषा सीखने की प्रक्रिया पर ध्यान देने से संकेत ज्ञान की बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। एक सयाना आदमी _ कहता है--'गाय लाओ'। दूसरा उसके व्यवहार द्वारा संकेत-ग्रह आज्ञानुसार गाय ले आता है। बालक यह सब देख-सुनकर उस वाक्य का अर्थ समझ जाता है। भागे चलकर 'गाय बाँधो', 'घोड़ा लामो' आदि वाक्य भी वह अपने बड़े-बूढों के व्यवहार को देखकर समझने लगता है। तब कहीं उसकी अन्वय-व्यतिरेक द्वारा सोचने की सहज प्रवृत्ति 'गाय' और 'लामो' का अवयवार्थ भी उसे समझा देती है। पहले बालक व्यवहार से पूरे वाक्य का अर्थ समझता है। यह भाषा-विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुका है। फिर धीरे धीरे व्यवहार से ही वह अलग अलग शब्दों का अर्थ समझने लगता है, अर्थात् उसे इस बात का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि किस शब्द का किस अर्थ में संकेत है। जब बालक व्यवहार से कुछ शब्द समझने लगता है, गुरुजन उसे बहुत से शब्द व्यवहार के बाहर के भी समझा देते हैं। वह (.) देखो-काव्यप्रकाश-संकेतसहाय एव पन्दः इत्यादि । साहित्यवपण, एकावली आदि ग्रंथों में संकेत-ग्रह का सम्यक विवेचन हुआ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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