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शब्द-शक्ति का एक परिचय
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अत: शब्दों का पारस्परिक संबंध शब्द की
पर्याय माना जाता है । शक्ति का एक रूप मान लिया जाता है। पतंजलि मुनि के अनुसार साधन का अर्थ कुछ और विस्तृत हो जाता है । गुणों के समूह को ही महाभाष्य ने साधन माना है। 1 गुण का श्राश्रय द्रव्य होता है । साधन-रूप शक्ति का आश्रय शब्द होता है । गुण भेदक और व्यावर्तक होता है । साधन भी अपने आश्रय को दूसरे से भिन्न बताने का काम करता है । इसी प्रकार क्रिया को पतंजलि ने 'धातु का' अर्थ' माना है । नैरुक्तों और आधुनिक भाषा - शास्त्रियों के अनुसार धातु अर्थात् क्रिया से ही भाषा की सृष्टि हुई है। इतने से ही शक्ति के क्रियात्मक रूप का महत्त्व प्रकट हो जाता है
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यदि शास्त्रीय और रूढ़ अर्थों को छोड़कर शक्ति के इन चार रूपों पर विचार किया जाय तो एक बड़े रहस्य की बात मालूम हो जाती है। दिक् में भूगोलशास्त्रीय दृष्टि से शब्द-शक्ति का समावेश होता है। 'काल' की लीला इतिहास में देखने को मिलती है । शब्द में कालवश शक्ति का हास तथा उपचय हुआ करता है । भाषा - शास्त्रियों से शब्द-शक्ति पर भूगोल - इतिहास का प्रभाव छिपा नहीं है । इसी प्रकार साधन का अर्थ वह शक्ति है जिसके द्वारा कोई भी वस्तु अपना व्यापार सिद्ध करती है 1 कारक इसी लिये साधन के अंतर्गत प्रा जाते हैं; क्योंकि शब्द की इसी शक्ति के द्वारा वाक्य की क्रिया निष्पन्न होती है । भर्तृहरि ने इस अर्थ को बिलकुल स्पष्ट कर दिया है और उन्होंने छ: कारकों से मिलते-जुलते
(१) देखो - महाभाष्य - धात्वर्यः किया |
(२) देखो - नाम च धातुजमाह निरुके । व्याकरणे शकटस्य च तोकम् ॥ आधुनिक Root-theory का विवेचन देखो - ( 1 ) Science of Language by Maxmuller and (2) Introduction to Nirukta by Dr. Laxman Sarupa. ( Oxford )
(३) देखो - किपायाममिविधचौ सामर्थ्य साधनं विदुः । ( वाक्यपदीय)
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