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________________ ४०२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका शब्द और अर्थ के इस संबंध की तात्त्विक समीक्षा करके शब्द ... तत्त्वज्ञों ने उसे तादात्म्य' संबंध माना है। शक्ति का पारमार्थिक नैयायिकों का ईश्वर-संकेत को शब्द और अर्थ अर्थात् तात्त्विक स्वरूप 'के बीच का संबंध मानना यदि तर्फ से सिद्ध भी हो जाय तो व्यवहार की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। शब्द और अर्थ का लोक में अभेद से व्यवहार होता है। 'अर्थ सुनना' और 'शब्द समझना बहुत प्रसिद्ध प्रयोग हैं। इसी प्रकार नैयायिकों का यह साधारण तर्क कि शक्ति शक्तिमान वस्तु से भिन्न कुछ नहीं है, शब्दविद् वैयाकरणों को मान्य नहीं है। वे मीमांसकों की भाँति शक्ति को एक स्वतंत्र पदार्थ मानते हैं। शक्ति द्रव्यपरतंत्र अवश्य रहती है पर उसका एक सिद्ध स्वभाव भी है। आगे चलकर वैयाकरण शक्ति का स्वरूप भी निराले ढंग का मानते हैं। वे वास्तविक शक्ति तो स्फोटनिष्ठ ३ मानते ही हैं, उसके व्यावहारिक रूप की भी चार कलाएँ मानते हैं। दिक, काल, साधन और क्रिया, उनके अनुसार, शब्द-शक्ति की चार कला हैं जो वस्तु का अभिधान करती हैं। इन चारों रूपों में शक्ति प्रकट होती है और अपने असीम और अगम्य रूप को व्यवहार की सीमा में लाकर गम्य और ज्ञेय बना देती है। अतः शक्ति का देश-काल आदि से रंगा हुअा रूप ही देखने को मिल सकता है। दिक और काल को न्याय-वैशेषिकवालों ने द्रव्य माना है। उनको शक्ति का रूप मानना केवल शब्द-शास्त्रियों की सूझ है। साधन का अर्थ भी बड़ा व्यापक है। व्याकरण में वह कारक का (१) शब्दार्थयोः संबंधश्च शक्तिरूपं तादात्म्य मेवेति । (प्रदीपोद्योत ) (२) भतृहरि ने वाक्यपदीय में इसका सविस्तर वर्णन किया है। (३) वैयाकरण-मूषण में स्फोट का सुंदर वर्णन है। (७) देखो वाक्यपदीय-दिक साधनं क्रिया काल इत्यादि ३१,पृ.१५७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034975
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyamsundardas
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1936
Total Pages134
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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